सुप्रीम कोर्ट ने जज को ‘अयोग्य’ बताने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक; न्यायिक अधिकारी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियों पर सख्त रुख

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम कदम उठाते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश के प्रभाव और क्रियान्वयन (operation) पर रोक लगा दी है, जिसमें एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) के खिलाफ बेहद गंभीर और व्यक्तिगत टिप्पणियां की गई थीं। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में संबंधित जज को “प्रथम दृष्टया अयोग्य” (prima facie unfit) करार दिया था।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश राज्य और हाईकोर्ट प्रशासन को नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत के इस अंतरिम आदेश से फिलहाल हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल जज के खिलाफ किसी भी प्रशासनिक कार्रवाई की संभावना पर विराम लग गया है।

क्या था पूरा मामला?

यह विवाद पंकज चतुर्वेदी बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले से जुड़ा है। याचिकाकर्ता, जो एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हैं, ने हाईकोर्ट की उन टिप्पणियों को हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिनमें उनकी न्यायिक क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाया गया था।

नवंबर 2025 में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक खंडपीठ, जिसमें जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह शामिल थे, ने एक आपराधिक अपील पर फैसला सुनाया था। यह अपील एक दोषी द्वारा दायर की गई थी जिसे ट्रायल कोर्ट (जज चतुर्वेदी की अदालत) ने भारतीय दंड संहिता और POCSO अधिनियम के तहत 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

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हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने अपील की सुनवाई के दौरान न केवल दोषी को बरी किया, बल्कि सजा सुनाने वाले जज के खिलाफ एक अलग आदेश भी पारित किया। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल जज को “साक्ष्यों की बिल्कुल भी समझ नहीं है” (absolutely no appreciation of evidence)।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की कहानी को सही मानने के लिए “मनगढ़ंत” स्कूल दस्तावेजों पर भरोसा किया और डीएनए रिपोर्ट के साक्ष्य मूल्य का सही आकलन नहीं किया। आलोचना को और तीखा करते हुए, हाईकोर्ट ने यहां तक टिप्पणी की कि जज सेशन मामलों को संभालने के लिए अयोग्य हैं और मामले को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास यह तय करने के लिए भेज दिया कि क्या जज को प्रशिक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलीलें

इन टिप्पणियों से आहत होकर जज पंकज चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि (conviction) के खिलाफ अपील सुनते समय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर जज की योग्यता पर टिप्पणी की, जबकि उन्हें केवल मामले के गुण-दोष (merits) पर विचार करना चाहिए था।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उनका फैसला “विस्तृत और तर्कसंगत” था, जिसमें स्कूल रिकॉर्ड, मार्कशीट और शिक्षकों के बयानों का सूक्ष्मता से विश्लेषण किया गया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि उन्हें “बिना सुने दोषी” (condemned unheard) ठहरा दिया गया, जो नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि एक अपीलीय अदालत द्वारा साक्ष्यों पर अलग दृष्टिकोण रखने के कारण किसी न्यायिक अधिकारी पर व्यक्तिगत हमला नहीं किया जाना चाहिए।

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शीर्ष अदालत का आदेश

दलीलों को सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करने की अनुमति दी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को एक प्रतिवादी (respondent) के रूप में शामिल करने की मंजूरी दी।

पीठ ने आदेश दिया:

“नोटिस जारी किया जाता है, जिसका जवाब चार सप्ताह के भीतर देना होगा। इस बीच, आक्षेपित आदेश (impugned order) का प्रभाव और संचालन स्थगित (stayed) रहेगा।”

याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड पृथ्वी राज चौहान और अधिवक्ता प्रकाश शर्मा, वेंकटेश राजपूत, हनुमंत सिंह, सचिन सिंह और अंकित तिवारी ने भी पैरवी की। मामले की अगली सुनवाई राज्य सरकार और हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा जवाब दाखिल करने के बाद होगी।

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