छात्रा की आत्महत्या मामले में शिक्षिका पर उकसावे के आरोप रद्द करने से इनकार के छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे, ने सिस्टर मर्सी @ एलिज़ाबेथ द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती देती थी जिसमें कक्षा 6 की एक छात्रा की आत्महत्या के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 305 के तहत आरोप रद्द करने से इनकार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है, और सभी मुद्दे विचारण के लिए खुले रहेंगे।

मामले की पृष्ठभूमि:

सिस्टर मर्सी @ एलिज़ाबेथ, जो कि अंबिकापुर स्थित कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल में एक ईसाई नन और शिक्षिका हैं, के खिलाफ मणिपुर थाना में अपराध क्रमांक 34/2024 के अंतर्गत धारा 305 IPC के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। यह मामला 6 फरवरी 2024 को कक्षा 6 की छात्रा अर्चिषा सिन्हा की आत्महत्या के बाद सामने आया। पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला था जिसमें याचिकाकर्ता का नाम था।

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याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में धारा 528, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत प्राथमिकी और 13 अप्रैल 2024 को दाखिल आरोप पत्र को रद्द करने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने 29 जुलाई 2024 को याचिका खारिज कर दी।

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याचिकाकर्ता के तर्क:

सिस्टर मर्सी की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि:

  • वह केवल कक्षा 4 को पढ़ाती थीं और मृत छात्रा से कोई शैक्षणिक संपर्क नहीं था।
  • घटना वाले दिन उन्होंने दूसरी मंजिल (जहाँ कक्षा 4 है) के शौचालय में तीन छात्राओं को पाया और अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत उनके पहचान पत्र ले लिए, बिना किसी मौखिक विवाद के।
  • सुसाइड नोट में कोई उकसावा या याचिकाकर्ता की ओर से कोई अनुचित व्यवहार का उल्लेख नहीं है।
  • 28 मार्च 2024 को उन्हें जमानत दी गई थी, जो सुसाइड नोट और अन्य छात्राओं के बयानों पर आधारित थी।
  • उन्होंने यह भी कहा कि FIR केवल सुसाइड नोट के आधार पर दर्ज की गई और गिरफ्तारी की गई, बिना किसी प्रारंभिक जांच या ठोस साक्ष्य के।
  • उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले Geo Varghese बनाम राजस्थान राज्य (AIR 2021 SC 4764) का हवाला देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया उकसावे का कोई मामला नहीं बनता।
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राज्य का पक्ष:

राज्य की ओर से नियुक्त वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा:

  • धारा 161 CrPC के तहत दर्ज बयानों समेत उपलब्ध सामग्री से यह प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता का व्यवहार छात्रों के मानसिक तनाव का कारण बना।
  • FIR और आरोप पत्र एक दंडनीय अपराध को दर्शाते हैं।
  • मृत छात्रा घटना वाले दिन स्कूल से लौटने के बाद अस्वस्थ और बेचैन हो गई थी, जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली।

हाईकोर्ट का विश्लेषण:

खंडपीठ ने कहा:

  • आरोप रद्द करने की याचिका पर विचार करते समय केवल अभियोजन पक्ष की बातों को देखा जाता है, बचाव पक्ष की दलीलों की जांच नहीं की जा सकती।
  • प्रथम दृष्टया पर्याप्त सामग्री मौजूद है जिससे आगे की जांच और विचारण आवश्यक हो जाता है।
  • कोर्ट ने F.C. Mullin बनाम दिल्ली संघ राज्यपाल (1988) 1 SCC 608 का हवाला देते हुए बच्चों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा पर बल दिया, जो कि अनुच्छेद 21 और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत संरक्षित हैं।
  • कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि आरोप विचारण योग्य हैं और FIR तथा आरोप पत्र को रद्द करने से इनकार कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही और अंतिम निर्णय:

  • 6 सितंबर 2024 को दो-न्यायाधीशों की पीठ ने नोटिस जारी किया और सुनवाई पूरी होने तक आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
  • 9 अप्रैल 2025 को याचिकाकर्ता को प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने का समय दिया गया।
  • 29 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने विशेष अनुमति याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि:
    “बार के दोनों ओर से प्रस्तुत दलीलों पर विचार करने के बाद, हमें विशेष अनुमति देने का कोई कारण नहीं दिखाई देता।”

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता की सभी दलीलें विचारण के लिए खुली रहेंगी।

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