सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी आपराधिक मुकदमे को केवल इस आधार पर अलग से चलाना कि अभियुक्त वर्तमान में विधायक है, कानूनन अस्थिर है और समानता एवं निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने हरियाणा के विधायक मम्मन खान से जुड़े नूंह साम्प्रदायिक हिंसा मामलों में ट्रायल कोर्ट और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेशों को निरस्त कर दिया और निर्देश दिया कि अपीलकर्ता का संयुक्त रूप से सह-अभियुक्तों के साथ ही ट्रायल होगा।
मामले की पृष्ठभूमि
मामला हरियाणा के फिरोजपुर झिरका से विधायक मम्मन खान से संबंधित है, जिनका नाम 1 अगस्त 2023 को थाना नगीना, जिला नूंह में दर्ज एफआईआर संख्या 149 और 150 में शामिल किया गया था। ये एफआईआर 31 जुलाई 2023 को नूंह जिले में हुई व्यापक साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं से संबंधित थीं।
ट्रायल कोर्ट (अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, नूंह) ने 28 अगस्त 2024 और 2 सितंबर 2024 को आदेश देकर थाना प्रभारी को खान के विरुद्ध अलग चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश दिया और उनका मुकदमा सह-अभियुक्तों से अलग कर दिया। अदालत ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ मामले में दिए गए निर्देशों के अनुसार विधायकों से जुड़े मामलों का शीघ्र निपटारा होना चाहिए और सह-अभियुक्तों की अनुपस्थिति के कारण कार्यवाही में देरी हो रही थी।

खान ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 12 दिसंबर 2024 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार रखा। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
पक्षकारों के तर्क
अपीलकर्ता मम्मन खान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि ट्रायल को अलग करना मनमाना और कानून के विरुद्ध है। चूंकि सभी आरोप एक ही “same transaction” से उत्पन्न हुए हैं और धारा 223(ड) दंप्रसं (Cr.P.C.) के तहत संयुक्त ट्रायल ही नियम है, इसलिए अलग ट्रायल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अश्विनी कुमार उपाध्याय मामले का हवाला गलत है क्योंकि उस निर्णय का उद्देश्य केवल शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करना था, न कि विधिक प्रक्रिया से विचलन की अनुमति देना।
दूसरी ओर, हरियाणा राज्य की ओर से कहा गया कि एक एफआईआर में 43 और दूसरी में 28 आरोपी हैं, जिससे संयुक्त ट्रायल लंबा और जटिल हो जाता। अलग ट्रायल सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित न्याय के अधिकार के अनुरूप है। राज्य ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता यह सिद्ध नहीं कर सके कि अलग ट्रायल से उन्हें कोई विशेष हानि होगी।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
न्यायमूर्ति आर. महादेवन द्वारा लिखित निर्णय में शीर्ष अदालत ने मुख्य प्रश्न निर्धारित किया — क्या केवल विधायक होने के आधार पर ट्रायल को अलग किया जा सकता है?
अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट का अश्विनी कुमार उपाध्याय मामले पर भरोसा “भ्रमित” था। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह फैसला केवल शीघ्र निपटारे पर जोर देता है, न कि विधायकों को किसी प्रक्रियात्मक असुविधा देने या वैधानिक नियमों से हटने की अनुमति देता है।
पीठ ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने बिना अभियोजन पक्ष की किसी याचिका के और बिना अपीलकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए, suo motu आदेश जारी किए, जो “अनुच्छेद 21 में निहित प्रक्रियात्मक निष्पक्षता के मूल सिद्धांत का उल्लंघन” है।
धारा 218-223 दंप्रसं के प्रावधानों का विश्लेषण करते हुए, अदालत ने नसीब सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले का हवाला दिया और कहा कि संयुक्त या अलग ट्रायल के दो प्रमुख मानदंड हैं — अभियुक्त को संभावित पूर्वाग्रह और न्यायिक देरी। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने “स्थापित सिद्धांत को उलट दिया” क्योंकि खान नियमित रूप से अदालत में उपस्थित हो रहे थे, जबकि अनुपस्थित या फरार सह-अभियुक्तों को अलग करने के बजाय उन्हीं को अलग कर दिया गया।
न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने “अपनी सीमा का अतिक्रमण किया” जब उसने पुलिस को अलग चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश दिया, क्योंकि यह अधिकार केवल जांच एजेंसी का है।
सबसे महत्वपूर्ण बात, अदालत ने संविधान में समानता की गारंटी पर जोर दिया और कहा:
“सबसे अहम, केवल विधायक होने की स्थिति अपीलकर्ता के लिए अलग ट्रायल का आधार नहीं हो सकती। सभी अभियुक्त कानून के समक्ष समान हैं और विशेष वर्गीकरण अनुच्छेद 14 में निहित समानता सिद्धांत के विपरीत है।”
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त और 2 सितंबर 2024 के ट्रायल कोर्ट के आदेश तथा 12 दिसंबर 2024 के हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त कर दिया। पुलिस को अलग चार्जशीट दाखिल करने और खान का ट्रायल अलग करने के सभी निर्देश रद्द कर दिए गए।
मामला ट्रायल कोर्ट को यह स्पष्ट निर्देश देकर वापस भेजा गया कि “अपीलकर्ता का सह-अभियुक्तों के साथ संयुक्त ट्रायल किया जाए।” अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट शीघ्र निपटारे हेतु समय-निर्धारण कर सकता है, लेकिन सभी पक्षकारों को सुनने के बाद और किसी भी प्रक्रियात्मक सुरक्षा से समझौता किए बिना।