सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट परिसर में अधिवक्ताओं द्वारा वीडियोग्राफी, रील बनाने और सोशल मीडिया के लिए कंटेंट निर्माण पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है। यह पत्र 25 जुलाई 2025 को लिखा गया है और इसमें पेशेवर आचरण के उल्लंघन, वर्जित सॉलिसिटेशन और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को लेकर गंभीर आपत्तियां दर्ज की गई हैं।
यह कदम तब उठाया गया जब SCAORA को बार के कई सदस्यों से इस मुद्दे पर अभ्यावेदन मिला, जिसमें यह चिंता जताई गई कि “सुप्रीम कोर्ट परिसर, विशेष रूप से हाई सिक्योरिटी ज़ोन्स में, अधिवक्ताओं द्वारा वीडियो रील, वीडियोग्राफी और संबंधित कंटेंट निर्माण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।”
SCAORA द्वारा उठाए गए मुख्य मुद्दे:
1. सॉलिसिटेशन का उल्लंघन:
पत्र में कहा गया है कि कई वीडियो, भले ही उनमें डिस्क्लेमर हो, अधिवक्ताओं का प्रचार करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिनमें उनके संपर्क विवरण होते हैं या ऐसे संदेश होते हैं जो “प्रतिबंधित सॉलिसिटेशन” की श्रेणी में आते हैं। यह बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के तहत स्पष्ट रूप से वर्जित है।

2. गरिमा और जनता के विश्वास का ह्रास:
SCAORA ने लिखा कि ऐसी गतिविधियां “कानूनी पेशे की गरिमा और अनुशासन को कम करती हैं” और “न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास कमजोर कर सकती हैं।” खासकर एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड की भागीदारी को और अधिक गंभीर बताया गया क्योंकि उन पर उच्चतर पेशेवर जिम्मेदारी होती है।
3. न्यायिक कार्यवाही की गलत प्रस्तुति:
पत्र में यह भी कहा गया है कि कई वीडियो में “कोर्ट की कार्यवाही की क्लिपिंग्स या लाइव स्ट्रीम की झलकियाँ” शामिल होती हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया को गलत रूप में प्रस्तुत कर सकती हैं और “कोर्ट की पवित्रता को ठेस पहुंचा सकती हैं।”
4. न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप:
SCAORA ने चेतावनी दी है कि यह प्रवृत्ति “मीडिया ट्रायल” को बढ़ावा दे सकती है और चयनित या सनसनीखेज तरीक़े से कार्यवाही को प्रस्तुत करके जनता की समझ को विकृत कर सकती है।
5. सुरक्षा में खतरा:
कोर्ट के हाई सिक्योरिटी ज़ोन में बिना अनुमति वीडियोग्राफी को SCAORA ने “सुरक्षा प्रोटोकॉल के उल्लंघन” के रूप में चिन्हित किया है जो कोर्ट की सुरक्षा और अखंडता के लिए जोखिमपूर्ण है।
6. न्यायमूर्तियों की चिंता:
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ न्यायाधीशों ने भी ऐसे वीडियो क्लिप्स के “गलत संदर्भ में इस्तेमाल” को लेकर चिंता जताई है, जो गलत सूचना फैला सकते हैं और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
SCAORA की मांगें:
पत्र में मुख्य न्यायाधीश से निम्नलिखित कदम उठाने की अपील की गई है:
- स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करें: सुप्रीम कोर्ट परिसर में वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी और किसी भी प्रकार की कंटेंट क्रिएशन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए स्पष्ट और व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए जाएं, जब तक कि यह अधिकृत रूप से स्वीकृत न हो।
- सॉलिसिटेशन पर दोहराया प्रतिबंध: सोशल मीडिया या किसी सार्वजनिक मंच पर वकालत के प्रचार को रोकने के लिए सॉलिसिटेशन पर पहले से लागू प्रतिबंध को दोहराया जाए।
- कोर्ट की कार्यवाही साझा करने पर रोक: कोर्ट की किसी भी रिकॉर्डेड या लाइव कार्यवाही को आधिकारिक चैनलों के अलावा कहीं और साझा करने पर रोक लगाई जाए।
- अनुशासनात्मक कार्रवाई: ऐसे उल्लंघनों के खिलाफ उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए, विशेष रूप से एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
पत्र के अंत में SCAORA ने विश्वास जताया कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा समय पर हस्तक्षेप सुप्रीम कोर्ट की गरिमा बनाए रखने, पेशेवर नैतिक मानकों को सुदृढ़ करने और कानूनी समुदाय में सुरक्षा और अनुशासन कायम रखने में अहम भूमिका निभाएगा।
यह प्रतिनिधित्व बार काउंसिल ऑफ इंडिया और दिल्ली बार काउंसिल को भी अग्रेषित किया गया है।