केरल राज्यपाल की याचिका पर सुनवाई टली, सुप्रीम कोर्ट ने कहा– पहले जस्टिस सुधांशु धूलिया की रिपोर्ट का इंतजार करें

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर की उस याचिका पर तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया जिसमें मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को उपकुलपति चयन समिति से बाहर करने की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सुधांशु धूलिया की रिपोर्ट आने दी जाए।

यह मामला अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ के समक्ष उल्लेखित किया। अटॉर्नी जनरल ने तत्काल सुनवाई की मांग की और कहा कि यदि समिति की सिफारिशें आ गईं तो उपकुलपति नियुक्ति का अधिकार किसके पास है, इसे लेकर जटिलताएं खड़ी हो सकती हैं।

उन्होंने कहा, “मेरी एक छोटी सी प्रार्थना है। इन आवेदनों को जस्टिस धूलिया की प्रक्रिया में बाधा के रूप में न देखा जाए। लेकिन एक अन्य पीठ ने हाल में दिए आदेश में कुलाधिपति को ही नियुक्ति प्राधिकारी के रूप में बहाल किया है।” यह टिप्पणी उन्होंने पश्चिम बंगाल राज्यपाल–उपकुलपति विवाद के मामले का हवाला देते हुए की, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित को मध्यस्थ नियुक्त किया था।

पीठ ने हालांकि कहा कि अभी रिपोर्ट का इंतजार किया जाएगा। न्यायमूर्ति पारडीवाला ने पूछा, “क्या हमें जस्टिस धूलिया की रिपोर्ट का इंतजार नहीं करना चाहिए?” पीठ ने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट आने के बाद ही समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। “रिपोर्ट आ जाने दीजिए। हम कार्यप्रणाली तय करेंगे। जिस दिन रिपोर्ट आएगी, हम संशोधित आदेश और रिपोर्ट दोनों को देखेंगे,” अदालत ने कहा और सुनवाई टाल दी।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 39 जिलों में जिला जजों का किया बड़े पैमाने पर तबादला

केरल के राज्यपाल, जो एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय और केरल डिजिटल विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं, ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मुख्यमंत्री की समिति में भागीदारी पर आपत्ति जताई थी।

याचिका में कहा गया कि न तो एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय अधिनियम और न ही केरल डिजिटल विश्वविद्यालय अधिनियम में राज्य सरकार या उच्च शिक्षा मंत्री की किसी भूमिका का प्रावधान है। जबकि, कोलकाता विश्वविद्यालय अधिनियम, 1979 में मंत्री की भूमिका का स्पष्ट उल्लेख है, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम डॉ. सनत कुमार घोष व अन्य मामले में मुख्यमंत्री को प्रक्रिया का हिस्सा बनाया था।

राज्यपाल ने दलील दी कि केरल में अलग प्रावधान होने के बावजूद पश्चिम बंगाल मॉडल को यहां लागू करना मनमाना है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) विनियमों के खिलाफ है। इन विनियमों में कहा गया है कि जिन व्यक्तियों का संबद्ध महाविद्यालयों से सीधा प्रशासनिक संबंध हो, उन्हें उपकुलपति नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा सकता ताकि हितों का टकराव न हो।

READ ALSO  पति ने पत्नी को कहा 'सेकंड हैंड', हाईकोर्ट ने 3 करोड़ हर्जाना देने का आदेश दिया

याचिका में कहा गया, “मुख्यमंत्री राज्य का कार्यकारी प्रमुख होने के नाते कई सरकारी कॉलेजों से जुड़े हैं, जिनका प्रबंधन सरकार करती है और वे विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। इसलिए यूजीसी विनियमों के अनुसार उन्हें उपकुलपति नियुक्ति में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।”

राज्यपाल ने स्पष्ट किया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सुधांशु धूलिया को चयन समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। उनकी आपत्ति केवल मुख्यमंत्री की भागीदारी और राज्य सरकार द्वारा सुझाए गए नामों पर है। याचिका में कहा गया कि मुख्यमंत्री को शामिल करना “अपने ही मामले में न्यायाधीश” बनने की निषिद्ध स्थिति पैदा करेगा।

READ ALSO  Supreme Court Upholds Advocate-on Record System, Says It Can Prescribe Who Can Plead Before It

अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर आगे की सुनवाई जस्टिस धूलिया की रिपोर्ट आने के बाद ही करेगा।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles