भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से उस मामले में स्पष्टीकरण मांगा है, जिसमें एक याचिकाकर्ता को उसकी कानूनी रूप से अनिवार्य सजा पूरी होने के बाद भी आठ साल से अधिक समय तक जेल में रखा गया। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले के तथ्यों को “काफी चौंकाने वाला” बताया और राज्य को इस “गंभीर चूक” पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, सोहन सिंह उर्फ बबलू पर शुरुआत में सत्र न्यायाधीश, खुरई, जिला सागर, मध्य प्रदेश द्वारा सत्र परीक्षण संख्या 416/2004 में मुकदमा चलाया गया था। उस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(1) (बलात्कार), 450 (आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने के लिए गृह-अतिचार), और 506B के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया था। निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराया और 2000/- रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
इस दोषसिद्धि के बाद, याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर की प्रमुख पीठ के समक्ष आपराधिक अपील संख्या 1613/2005 दायर की।

हाईकोर्ट का फैसला और सज़ा में बदलाव
10 अक्टूबर, 2007 को, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। आईपीसी की धारा 376, 450, और 506-बी के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए, हाईकोर्ट ने धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिए सजा को आजीवन कारावास से घटाकर सात साल के सश्रम कारावास में बदल दिया। अन्य अपराधों के लिए दी गई सजाओं को बरकरार रखा गया और यह निर्देश दिया गया कि सभी सजाएं एक साथ चलेंगी।
अपने फैसले में, हाईकोर्ट ने पैराग्राफ 21 और 22 में सजा कम करने का कारण बताया:
“21. वर्तमान मामले में, अभियोक्त्री एक विवाहित महिला थी। प्राथमिकी दर्ज करने में देरी हुई है। बलात्कार के अपराध के संबंध में चिकित्सा साक्ष्य की पुष्टि नहीं हुई है। समग्र परिस्थितियों और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को देखते हुए, हमारी राय में, यह उचित और न्यायसंगत होगा यदि निचली अदालत द्वारा आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दी गई सजा को घटाकर 7 साल कर दिया जाए।
- नतीजतन, अपीलकर्ता द्वारा दायर की गई अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। धारा 376, 450 और 506-बी के तहत दंडनीय अपराध के लिए उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा जाता है। हालांकि, निचली अदालत द्वारा आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दी गई सजा को 7 साल के सश्रम कारावास में संशोधित किया जाता है और अन्य धाराओं के लिए निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा जाता है। सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। अपीलकर्ता अपनी जेल की सजा का शेष हिस्सा काटने के लिए जेल में रहेगा।”
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आदेश
यह मामला विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 11244/2025 के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया। कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और परेशान करने वाली विसंगति पर ध्यान दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “चिंता का विषय यह है कि यद्यपि हाईकोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आजीवन कारावास की सजा को 7 साल के सश्रम कारावास में बदल दिया था, लेकिन याचिकाकर्ता को 6-6-2025 को ही जेल से रिहा किया गया।”
इस अवैध हिरासत पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, पीठ ने कहा, “हम जानना चाहेंगे कि इतनी गंभीर चूक कैसे हुई और याचिकाकर्ता सात साल की पूरी सजा काटने के बाद भी 8 साल से अधिक समय तक जेल में क्यों रहा।”
कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य को इस लंबी कैद के लिए स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया है। आदेश में कहा गया है, “हम चाहते हैं कि राज्य इस संबंध में उचित स्पष्टीकरण दे।”
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है और अगली सुनवाई 8 सितंबर, 2025 के लिए निर्धारित की है, जिसे बोर्ड में सबसे ऊपर सूचीबद्ध किया जाएगा।