सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर, 2025 को दिए एक ऐतिहासिक फैसले में गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (GUVNL) और एस्सार पावर लिमिटेड (EPL) के बीच बिजली के गलत डायवर्जन को लेकर चले आ रहे एक लंबे विवाद का अंत कर दिया है। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि GUVNL न केवल अपने हिस्से से डायवर्ट की गई बिजली के लिए मुआवजे का हकदार है, बल्कि उस बिजली के लिए भुगतान किए गए आनुपातिक निश्चित शुल्कों (fixed charges) की प्रतिपूर्ति का भी अलग से हकदार है। कोर्ट ने इस फैसले के साथ गुजरात विद्युत नियामक आयोग (GERC) और विद्युत के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) के पिछले आदेशों में संशोधन किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद 30 मई, 1996 को GUVNL के पूर्ववर्ती गुजरात विद्युत बोर्ड (GEB) और EPL के बीच हुए एक विद्युत खरीद समझौते (PPA) से शुरू हुआ था। इस समझौते के तहत, GEB को EPL के हजीरा प्लांट की कुल 515 मेगावाट क्षमता में से 300 मेगावाट बिजली 20 वर्षों तक खरीदनी थी। शेष 215 मेगावाट बिजली EPL की सहयोगी कंपनी एस्सार स्टील लिमिटेड (ESL) को बेची जानी थी, जिससे GEB और ESL के बीच बिजली का आनुपातिक आवंटन लगभग 58:42 के अनुपात में तय हुआ।
विवाद तब उत्पन्न हुआ जब EPL ने GEB के कोटे की बिजली को कम करके अपनी सहयोगी कंपनी ESL को उसके हिस्से से अधिक बिजली की आपूर्ति शुरू कर दी। इसके जवाब में, GEB ने अक्टूबर 2004 में अप्रैल 1998 से सितंबर 2004 के बीच डायवर्ट की गई बिजली के लिए ₹64 करोड़ की वसूली का प्रस्ताव रखा। हालांकि EPL ने शुरुआत में यह राशि स्वीकार कर ली, लेकिन GEB ने बाद में स्पष्ट किया कि यह कोई अंतिम समझौता नहीं था।

अदालत के शब्दों में, इस “जटिल कानूनी यात्रा” की शुरुआत 2005 में हुई जब GUVNL ने GERC के समक्ष एक याचिका दायर की।
पिछले निर्णय और अपीलें
18 फरवरी, 2009 को, GERC ने GUVNL के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि EPL आनुपातिक सिद्धांत के आधार पर बिजली की आपूर्ति करने के लिए बाध्य था। आयोग ने यह भी कहा कि यदि GUVNL अपने हिस्से की बिजली नहीं लेता है, तो EPL उसे ESL को बेच सकता है, लेकिन इसके लिए उसे “आनुपातिक वार्षिक निश्चित शुल्कों की प्रतिपूर्ति” करनी होगी।
इस आदेश को दोनों पक्षों ने APTEL में चुनौती दी, जिसने 22 फरवरी, 2010 को GERC के आदेश को आंशिक रूप से पलट दिया। हालांकि, यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसने 9 अगस्त, 2016 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए APTEL के आदेश को रद्द कर दिया और GERC के 2009 के आदेश को पूरी तरह से बहाल कर दिया।
इसके बाद, GERC और APTEL ने फिर से इस मामले पर सुनवाई की, लेकिन निश्चित शुल्कों की प्रतिपूर्ति के मुद्दे पर GUVNL की मांग खारिज कर दी गई, जिसके कारण यह मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस विवाद का मूल मुद्दा उसके अपने 2016 के फैसले की सही व्याख्या करना था, जिसे GERC और APTEL दोनों ने गलत समझा था। बेंच ने ‘मुआवजे’ और ‘प्रतिपूर्ति’ की अवधारणाओं को अलग-अलग स्पष्ट किया।
निश्चित शुल्कों की प्रतिपूर्ति पर
कोर्ट ने कहा कि GUVNL का निश्चित शुल्कों की प्रतिपूर्ति का अधिकार, गलत डायवर्जन के लिए मिलने वाले मुआवजे से पूरी तरह अलग और अतिरिक्त है। कोर्ट के अनुसार, “जब GUVNL को वह बिजली मिली ही नहीं जिसके लिए उसने मासिक आधार पर निश्चित शुल्क का भुगतान किया था, तो वह उन शुल्कों की प्रतिपूर्ति का हकदार था। यह मुआवजा नहीं, बल्कि प्रत्यास्थापन (restitution) के सिद्धांत पर आधारित है क्योंकि यह भुगतान देय ही नहीं था।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि EPL को दोहरा लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती – एक तरफ GUVNL से बिना बिजली दिए निश्चित शुल्क लेना और दूसरी तरफ वही बिजली ESL को बेचकर उससे भी निश्चित शुल्क वसूलना।
डायवर्ट की गई ऊर्जा की गणना पर
दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह था कि बिजली डायवर्जन की गणना प्रति घंटे के आधार पर हो या आधे घंटे के आधार पर। PPA में मूल रूप से प्रति घंटे का उल्लेख था। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि EPL ने स्वयं 2003 में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) से सलाह मांगी थी, जिसने 21 फरवरी, 2005 को आधे घंटे के आधार पर मीटरिंग की सिफारिश की थी। इस सिफारिश को तीनों पक्षों ने स्वीकार किया और लागू भी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि EPL अब उस गणना पद्धति पर आपत्ति नहीं कर सकता जिसे उसने स्वयं आमंत्रित किया था। इसलिए, 23 फरवरी, 2005 से डायवर्जन की गणना आधे घंटे के आधार पर ही की जाएगी।
अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने GERC और APTEL के आदेशों को संशोधित करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:
- GUVNL गलत डायवर्जन के लिए मुआवजे के अलावा, डायवर्ट की गई बिजली पर दिए गए निश्चित शुल्कों की प्रतिपूर्ति का भी हकदार है।
- डायवर्ट की गई ऊर्जा की गणना आधे घंटे के आधार पर की जाएगी।
कोर्ट ने कुछ तथ्यात्मक विवादों के पुनर्मूल्यांकन के लिए मामले को GERC को वापस भेज दिया। दोनों पक्षों को अपना-अपना कानूनी खर्च स्वयं वहन करने का निर्देश दिया गया।