सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कानूनी ड्राफ्टिंग की महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने नए नियुक्त एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड (AoRs) को संबोधित करते हुए “कन्विन्सिंग ड्राफ्टिंग” के महत्व को समझाया और सुझाव दिया कि वकीलों को तथ्यों का खुलासा सोच-समझकर करना चाहिए।
उन्होंने कहा, “उन सभी तथ्यों को उजागर करें जो आवश्यक हैं, लेकिन ऐसा कुछ न कहें जिसके बिना भी आपका केस टिक सकता है। ऐसा कुछ भी दोहराने की जरूरत नहीं जो अनावश्यक हो। लेकिन साथ ही, ऐसे तथ्यों को छिपाना भी उचित नहीं, जिनका खुलासा किया जाना चाहिए।” उन्होंने यह भी बताया कि प्रभावी ड्राफ्टिंग एक कला है, जिसे न तो कानून के संस्थानों में सिखाया जाता है और न ही विधि पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाता है। यह कौशल वकीलों को खुद विकसित करना होता है।
ड्राफ्टिंग से करियर को मिली ऊंचाई
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने करियर के शुरुआती दिनों का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे उनकी ड्राफ्टिंग कुशलता ने उनके पेशेवर जीवन को नई दिशा दी। उन्होंने कहा, “जब एक वरिष्ठ वकील, जो बाद में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने, ने मेरी ड्राफ्टिंग देखी तो वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके कुछ महत्वपूर्ण मामलों के लिए ड्राफ्टिंग कर सकता हूँ। यह मेरे लिए एक शानदार अवसर था।”

उन्होंने आगे बताया कि कैसे उनकी ड्राफ्टिंग कौशल को पहचान मिली और बड़े वकीलों ने उन्हें अपने केस ड्राफ्टिंग के लिए नियुक्त किया। “उस समय जब मुझे अपने क्लाइंट्स से ₹500 मिलते थे, वही वरिष्ठ वकील केवल ड्राफ्टिंग के लिए मुझे ₹1100 भेजते थे। धीरे-धीरे हाईकोर्ट में यह संदेश फैल गया कि यह लड़का ड्राफ्टिंग में बहुत अच्छा है। इससे 7-8 बड़े वकील मेरे पास ड्राफ्टिंग के लिए आने लगे। मैंने अपनी ड्राफ्टिंग की गुणवत्ता पर जो समय और मेहनत लगाई थी, उसका मुझे सीधा लाभ मिला।”
जमानत याचिका के ड्राफ्टिंग का उदाहरण
जस्टिस सूर्यकांत ने एक उदाहरण साझा किया जिसमें उन्होंने एक जूनियर द्वारा तैयार की गई जमानत याचिका को पूरी तरह से फिर से ड्राफ्ट किया। उन्होंने बताया कि उस याचिका में वकील ने अपने बचाव पक्ष की दलीलें पहले ही उजागर कर दी थीं, जो सही नहीं था। उन्होंने इसे पुनः तैयार किया और केवल आवश्यक तथ्य और प्राथमिकी (FIR) का उल्लेख किया।
उन्होंने समझाया कि “जब आप एक याचिका ड्राफ्ट करते हैं, तो आपकी घटनाओं का वर्णन ऐसा होना चाहिए कि जब कोई पहला पैराग्राफ पढ़े, तो उसे दूसरा पैराग्राफ भी पढ़ने की जिज्ञासा हो। घटनाएं आपस में इतनी जुड़ी होनी चाहिए कि पाठक अंत तक पढ़ने के लिए प्रेरित हो जाए। अगर आप इस कला में माहिर हो जाते हैं, तो मैं गारंटी देता हूँ कि आधा केस आप पहले ही जीत चुके हैं!”
ड्राफ्टिंग कैसे प्रभावित करती है न्यायाधीशों की सोच
इस कार्यक्रम में मौजूद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जे.के. माहेश्वरी ने भी ड्राफ्टिंग की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एक मजबूत याचिका किसी केस के स्वीकार होने में अहम भूमिका निभा सकती है।
उन्होंने कहा, “हम हर दिन सैकड़ों केसों की फाइलें पढ़ते हैं, और इन्हें देखकर समझ सकते हैं कि किसी AOR ने कितनी मेहनत की है। कई बार ऐसा भी होता है कि केस में ज्यादा दम नहीं होता, लेकिन अगर याचिका स्पष्ट और मजबूत होती है, तो हमें नोटिस जारी करने का मन करता है। दूसरी तरफ, अगर केस में दम है लेकिन ड्राफ्टिंग कमजोर है, तो हमारी सोच हाईकोर्ट के फैसले के पक्ष में झुक सकती है।”
जस्टिस केवी विश्वनाथन की नई AoRs को शुभकामनाएं
कार्यक्रम में मौजूद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस केवी विश्वनाथन ने भी नए AoRs को परीक्षा पास करने पर बधाई दी और उन्हें उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाई। उन्होंने कहा, “जिस तरह शक्ति के साथ जिम्मेदारी आती है, उसी तरह पहचान के साथ भी बहुत जिम्मेदारी जुड़ी होती है। यह जश्न मनाने का समय है, लेकिन साथ ही इस बात को याद रखना चाहिए कि आपको इस संस्था के प्रति भी अपना कर्तव्य निभाना है।”