नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज (4 मार्च) जिला न्यायपालिका में जजों की भारी कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की, यह इंगित करते हुए कि इस कमी के कारण बच्चों के यौन उत्पीड़न से संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई के लिए बनाई गई विशेष अदालतों का कार्य बाधित हो रहा है। अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों की रिक्तियां लम्बे समय तक बनी रहने से मुकदमों में देरी हो रही है, जिससे बच्चों से जुड़े संवेदनशील मामलों में शीघ्र न्याय दिलाने के प्रयास प्रभावित हो रहे हैं।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पी.बी. वराले की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि POCSO मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालतें तो बनाई गई हैं, लेकिन पर्याप्त संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं होने के कारण उनका उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। न्यायिक अधिकारियों की कमी न केवल अदालतों पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामलों की तेज सुनवाई के लिए जारी किए गए निर्देशों का पालन करना भी कठिन बना रही है।
यह मुद्दा उन स्वतः संज्ञान (suo moto) कार्यवाही के दौरान उठा, जिन्हें POCSO अधिनियम के कार्यान्वयन में व्याप्त प्रणालीगत खामियों को दूर करने के लिए शुरू किया गया था। इस मामले में न्यायालय द्वारा नियुक्त अमीकस क्यूरी (विशेष सलाहकार) वरिष्ठ अधिवक्ता वी.वी. गिरि ने सुझाव दिया कि राज्यों से एक अद्यतन अनुपालन रिपोर्ट मंगवाई जाए, जिससे यह आकलन किया जा सके कि विशेष POCSO अदालतों की स्थापना, विशेष अभियोजकों की नियुक्ति और संबंधित अधिकारियों के प्रशिक्षण जैसे उपाय कितने प्रभावी साबित हो रहे हैं।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने इस मुद्दे पर नाराजगी जताते हुए कहा, “हमारे पास न्यायाधीश ही नहीं हैं। न्यायाधीश कहां से लाएं? यह किसकी गलती है? सभी अदालतें बोझ से दबी हुई हैं, हमें न्यायाधीश नहीं मिल रहे हैं। सभी पद खाली पड़े हैं।” उन्होंने गुजरात का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 213 पदों में से केवल 6-10 पदों पर ही नियुक्ति हुई है। यह स्थिति पूरे देश में न्यायपालिका की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी माना कि न्यायालयों के आदेशों का पालन कराना एक बड़ी चुनौती बन गया है। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि विशेष अदालतों के गठन के बावजूद, मामलों की अत्यधिक संख्या और न्यायाधीशों की कमी के कारण कई आवश्यक निर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन संभव नहीं हो पा रहा है।
इसके अलावा, अदालत ने उच्च न्यायालयों से POCSO मामलों की लंबित संख्या पर रिपोर्ट मंगाने की संभावना पर भी चर्चा की। हालांकि, न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने इस तरह की डेटा-संग्रह प्रक्रिया की उपयोगिता को लेकर संदेह व्यक्त किया और कहा कि जब तक न्यायाधीशों की संख्या पर्याप्त नहीं होगी, तब तक यह प्रक्रिया अप्रभावी ही रहेगी।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 25 मार्च के लिए स्थगित कर दी। अदालत ने संकेत दिया कि अगले अवसर पर इस मामले का अंतिम निपटारा किया जा सकता है, हालांकि इसने उच्च न्यायालयों को कोई नया निर्देश जारी करने से परहेज किया, यह स्वीकार करते हुए कि मौजूदा न्यायिक संरचना की अपनी सीमाएं हैं।