सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड सरकार द्वारा अपने आदेशों का पालन न करने पर कड़ी नाराज़गी जताई और राज्य के मुख्य सचिव को 8 अक्तूबर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया। अदालत ने पूछा कि आखिर क्यों न राज्य सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए, क्योंकि अब तक सरंडा वन्यजीव अभयारण्य (SWL) और ससंगदाबुरू कंज़र्वेशन रिज़र्व (SCR) को ‘कंज़र्वेशन रिज़र्व’ घोषित नहीं किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने टिप्पणी की, “झारखंड सरकार हमारे 29 अप्रैल, 2025 के आदेश की स्पष्ट अवमानना कर रही है… हम मुख्य सचिव को निर्देश देते हैं कि 8 अक्तूबर सुबह 10.30 बजे अदालत में हाज़िर हों और बताएं कि अवमानना की कार्यवाही क्यों न चलाई जाए।”
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत राज्य सरकारें किसी भी ऐसे क्षेत्र को, जो राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के समीप हो या जिन्हें जोड़ने का कार्य करता हो, स्थानीय समुदायों से परामर्श के बाद ‘कंज़र्वेशन रिज़र्व’ घोषित कर सकती हैं। इसका उद्देश्य परिदृश्य, समुद्रतटीय क्षेत्र, वनस्पति, जीव-जंतु और उनके आवास का संरक्षण है।

अदालत ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि आदेशों का पालन करने के बजाय सरकार ने 13 मई को एक समिति गठित कर दी ताकि मामले पर “आगे विचार” किया जा सके। सीजेआई ने व्यंग्य करते हुए कहा, “अभी कुछ दिन पहले राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मू) कह रही थीं कि झारखंड में बहुत अच्छी जेलें हैं।” अदालत ने चेतावनी दी कि यदि आदेशों का पालन नहीं किया गया तो संबंधित अधिकारियों को छह माह की सज़ा दी जा सकती है।
यह मामला झारखंड सरकार की लगातार देरी से जुड़ा है, जबकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) ने 29 नवंबर, 2024 को ही प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया था। लेकिन मार्च 2025 में वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने फाइल वापस भेज दी, जिससे प्रक्रिया अटक गई।
सरकार ने अदालत को बताया कि अब उसने प्रस्तावित क्षेत्र को 31,468 हेक्टेयर से बढ़ाकर 57,519 हेक्टेयर कर दिया है और अतिरिक्त 13,603 हेक्टेयर क्षेत्र को ससंगदाबुरू कंज़र्वेशन रिज़र्व के रूप में अधिसूचित करने का प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्ताव वर्तमान में वाइल्डलाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (WII), देहरादून को विशेषज्ञ राय के लिए भेजा गया है।
पीठ ने WII को निर्देश दिया कि वह एक माह में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपे और राज्य सरकार को आदेश दिया कि राज्य वन्यजीव बोर्ड, मंत्रिमंडल की स्वीकृति और अंतिम अधिसूचना की प्रक्रिया अधिकतम दो माह के भीतर पूरी करे।