सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक असामान्य टिप्पणी करते हुए झारखंड हाईकोर्ट के जजों को सलाह दी कि वे अपनी स्वीकृत छुट्टियां लेकर लंबित फैसले लिखें। शीर्ष अदालत ने पाया कि दर्जनों मामले ऐसे हैं जिन पर सुनवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन अब तक फैसला नहीं सुनाया गया है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ, झारखंड के दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में होमगार्ड भर्ती से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान पीठ ने कहा कि 61 मामले ऐसे हैं जिनमें फैसला सुरक्षित रखा गया है, लेकिन अभी तक सुनाया नहीं गया। पीठ ने झारखंड हाईकोर्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत सिन्हा से कहा,
“झारखंड हाईकोर्ट के जजों से कहिए कि वे 10-12 हफ्ते की अपनी स्वीकृत छुट्टियां लेकर फैसले लिखें। आजकल जजों के पास काफी छुट्टियां बची होती हैं। बस इन मामलों से छुटकारा पा लीजिए। लोगों को फैसले चाहिए, उन्हें न्यायशास्त्र या किसी और चीज की चिंता नहीं है। राहत देने से इनकार किया जाए या नहीं, इस पर तर्कपूर्ण आदेश दीजिए।”
सिन्हा ने 31 जनवरी तक के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि तब से कई मामलों में आदेश पारित किए जा चुके हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि 61 मामले फिर भी बड़ी संख्या है और उनसे कहा कि इस सुझाव को झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचाएं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,
“यह हमारा अनुरोध है—बस इसे कीजिए। हमारे सुझाव को मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचाइए।”

शीर्ष अदालत ने आदेश में कहा कि हाईकोर्ट के जज तत्काल कदम उठाएं और आवश्यक कार्य पूरा करें। मामला तीन महीने बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा और तब तक लंबित काम निपटा लिया जाए।
याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि होमगार्ड भर्ती से जुड़े मामलों में 6 अप्रैल 2023 से फैसला सुरक्षित रखा गया है, लेकिन अब तक सुनाया नहीं गया। 70 से अधिक याचिकाकर्ताओं ने, अधिवक्ता वान्या गुप्ता के माध्यम से, हाईकोर्ट का रुख किया था जब झारखंड सरकार ने 2017 में विज्ञापित 1,000 से अधिक होमगार्ड पदों की भर्ती रद्द कर दी, जबकि उनके नाम चयन सूची में थे। हाईकोर्ट ने 2021 से मामले की सुनवाई की और 6 अप्रैल 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
हालांकि, सिन्हा ने पीठ को बताया कि छात्रों के मामले में अब आदेश सुना दिया गया है, लेकिन अदालत की टिप्पणियां एक व्यापक चिंता को दर्शाती हैं। झारखंड हाईकोर्ट लंबे समय से फैसले न सुनाने के कारण सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है, विशेषकर मृत्युदंड और आजीवन कारावास जैसे गंभीर आपराधिक मामलों में।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई को हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि 31 जनवरी तक या उससे पहले सुरक्षित रखे गए सभी आपराधिक और दीवानी मामलों की स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाए।