सुप्रीम कोर्ट ने M/s Bengani Food Products Pvt. Ltd. द्वारा दायर सिविल अपील को खारिज करते हुए नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा बीमा दावा अस्वीकार किए जाने के निर्णय को बरकरार रखा है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बीमा अनुबंध की व्याख्या उसकी शर्तों के अनुसार ही की जानी चाहिए और पॉलिसीधारक उस दायरे से अधिक दावा नहीं कर सकते जो पॉलिसी में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है।
यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 24 जुलाई 2025 को सुनाया।
पृष्ठभूमि
Bengani Food Products Pvt. Ltd., जो पोल्ट्री एवं कैटल फीड के निर्यात के कार्य में संलग्न है, ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से 25 जनवरी 2007 से 24 जनवरी 2008 की अवधि के लिए ₹200 करोड़ की सीमा वाली एक Marine Open Transit Insurance Policy प्राप्त की थी।

7 फरवरी 2007 को, 24,700 क्विंटल मक्का का एक खेप हावड़ा के शालीमार रेलवे यार्ड पर उतारा गया। इसमें से 2,627 क्विंटल मक्का तुरंत एक तीसरे पक्ष को बेच दिया गया और शेष खेप खुले यार्ड में रखी रही। 7 और 8 फरवरी की शाम को भारी वर्षा हुई, जिससे मक्का को क्षति पहुँची और उसमें फफूंद लग गई।
9 फरवरी 2007 को बीमित पक्ष ने बीमाकर्ता को इस घटना की जानकारी दी। बीमाकर्ता द्वारा नियुक्त सर्वेयर ने प्रारंभ में ₹62.25 लाख का नुकसान बताया, जिसे बाद में घटाकर ₹36.17 लाख कर दिया गया, क्योंकि यह ज्ञात हुआ कि मक्का का एक बड़ा हिस्सा बीमाकर्ता को सूचना दिए बिना एक निजी गोदाम में स्थानांतरित कर दिया गया था।
7 सितंबर 2007 को बीमाकर्ता ने पॉलिसी की Inland Transit (Rail/Road) Clause A की धारा 5 और 8 का हवाला देते हुए दावा अस्वीकार कर दिया। कहा गया कि यह नुकसान ट्रांजिट समाप्त होने के बाद और बीमित पक्ष द्वारा यथोचित सावधानी न बरतने के कारण हुआ।
एनसीडीआरसी और सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही
बीमाकर्ता द्वारा दावा खारिज किए जाने के बाद बीमित पक्ष ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) में ₹3.06 करोड़ का मुआवजा मांगते हुए उपभोक्ता शिकायत दायर की। 18 फरवरी 2016 को आयोग ने शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी कि ट्रांजिट समाप्त हो चुका था और बीमाकर्ता की देनदारी समाप्त हो गई थी।
इस निर्णय को चुनौती देते हुए बीमित पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पॉलिसी “गोदाम से गोदाम” (warehouse-to-warehouse) कवरेज प्रदान करती है, जिसमें अंतिम गंतव्य पर पहुंचने के बाद सात दिनों तक की अवधि शामिल है। उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे यार्ड ट्रांजिट का अंतिम बिंदु नहीं था और बीमाकर्ता ने समय पर सूचना मिलने के बावजूद उचित कार्रवाई नहीं की।
हालांकि, पीठ ने इन दलीलों को अस्वीकार कर दिया। पॉलिसी की धारा 5 का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा:
“अपीलकर्ताओं द्वारा यह प्रदर्शित नहीं किया गया कि शालीमार रेलवे यार्ड को अंतिम गोदाम या बीमा पॉलिसी के तहत नामित गंतव्य घोषित किया गया था… ऐसी कोई घोषणा या व्यवस्था न होने की स्थिति में, लदान के बाद कवरेज समाप्त होने का निष्कर्ष पूरी तरह उचित है।”
कोर्ट ने अपने पूर्व निर्णय Vikram Greentech India Ltd. बनाम New India Assurance Co. Ltd., (2009) 5 SCC 599 का हवाला देते हुए कहा:
“बीमा अनुबंध वाणिज्यिक लेनदेन का एक प्रकार है और इसे अन्य किसी भी अनुबंध की तरह, उसकी अपनी शर्तों के अनुसार ही पढ़ा जाना चाहिए।”
आगे कोर्ट ने यह भी कहा:
“बीमित पक्ष बीमा पॉलिसी में निहित सीमा से अधिक कुछ भी दावा नहीं कर सकता, और पॉलिसी की शर्तों की व्याख्या जैसे की गई है वैसी ही की जानी चाहिए — न उसमें कोई शब्द जोड़ा जा सकता है, न घटाया।”
कर्तव्यों का उल्लंघन और जानकारी छिपाना
कोर्ट ने यह भी माना कि बीमित पक्ष पॉलिसी की धारा 8 के अंतर्गत अपने कर्तव्यों को निभाने में विफल रहा, जिसमें नुकसान को टालने या कम करने के लिए उचित कदम उठाने की आवश्यकता है। सर्वेयर की रिपोर्ट में पाया गया कि मक्का पुराने और फटे हुए बोरे में संग्रहित था, जो प्लास्टिक शीट से ठीक तरह से ढका नहीं गया था और मौसम के प्रभाव से पूरी तरह असुरक्षित था, जबकि नुकसान रोकने के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध था।
इसके अतिरिक्त, यह भी पाया गया कि 10,910.40 क्विंटल मक्का 14-15 फरवरी 2007 के बीच शालीमार रेलवे यार्ड से ऋषड़ा स्थित एक गोदाम में स्थानांतरित किया गया था — जिसकी जानकारी मूल दावा पत्र में नहीं दी गई थी। कोर्ट ने इसे uberima fides (अत्यंत सद्भावना) के सिद्धांत का उल्लंघन माना, जो बीमा अनुबंधों की नींव है।
निर्णय
कोर्ट ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि पॉलिसी की शर्तों में कोई अस्पष्टता है। कोर्ट ने कहा:
“धारा 5 को स्पष्टता और सटीकता के साथ लिखा गया है। कवरेज समाप्त होने के तरीके में कोई अस्पष्टता नहीं है… अतः contra proferentem सिद्धांत यहां लागू नहीं होता।”
अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि NCDRC द्वारा बीमाकर्ता के दावे को अस्वीकार करने का निर्णय सही था। अपील में कोई दम न पाते हुए, न्यायालय ने इसे बिना किसी लागत के खारिज कर दिया।