सुप्रीम कोर्ट: ड्राइवर के पास खतरनाक सामान ले जाने वाले वाहन के लिए रूल 9 की अनुमोदन नहीं होने पर बीमा कंपनी ‘पे एंड रिकवर’ कर सकती है


सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि किसी वाहन का ड्राइवर खतरनाक वस्तुओं के परिवहन के लिए आवश्यक ‘रूल 9’ के तहत अनुमोदन (endorsement) नहीं रखता है, तो बीमा कंपनी पीड़ितों को मुआवज़ा देने की ज़िम्मेदार होगी, लेकिन वह यह राशि वाहन मालिक से वसूल सकती है। यह निर्णय न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनाया।

पृष्ठभूमि

यह अपीलें एम/एस चठा सर्विस स्टेशन द्वारा दायर की गई थीं, जो एक तेल टैंकर का मालिक है, जो एक घातक दुर्घटना में शामिल था। यह अपीलें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध थीं, जिसमें हाई कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) के उस निर्देश को बरकरार रखा था, जिसमें बीमा कंपनी को दो मृत व्यक्तियों — एक साइकिल सवार और एक पैदल यात्री — के परिजनों को मुआवजा देने और फिर वह राशि वाहन मालिक से वसूलने को कहा गया था।

ड्राइवर के पास खतरनाक वस्तुएं ले जाने के लिए आवश्यक अनुमोदन नहीं था।
न्यायाधिकरण ने एफआईआर (Ex. C1), चार्जशीट (Ex. C3), और चश्मदीद गवाह CW2 की गवाही के आधार पर ड्राइवर की लापरवाही मानी। मुआवज़े की राशि पर विवाद नहीं था। सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ “पे एंड रिकवर” के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई थी।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ता (वाहन मालिक) की ओर से कहा गया कि:

  • दुर्घटना का कारण खतरनाक माल नहीं था।
  • दुर्घटना के समय वाहन में खतरनाक माल नहीं था।
  • अपील के दौरान एक प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया गया, जिससे साबित होता है कि ड्राइवर ने प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

वहीं बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि:

  • ड्राइवर ने स्वयं स्वीकार किया कि उसके पास रूल 9 के तहत आवश्यक अनुमोदन नहीं था।
  • उसने यह भी स्वीकार किया कि दुर्घटना के समय टैंकर में तेल लदा हुआ था।
  • जो प्रमाणपत्र अपील में दिया गया, वह सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 41 नियम 27 के अंतर्गत स्वीकार्य नहीं था, क्योंकि वह ट्रायल में प्रस्तुत नहीं किया गया और कोई ठोस कारण नहीं बताया गया।

कोर्ट का विश्लेषण

कोर्ट ने कहा कि सेंट्रल मोटर व्हीकल्स रूल्स, 1989 के रूल 9 के तहत, जो भी चालक खतरनाक वस्तुओं का परिवहन करता है, उसके पास न केवल परिवहन वाहन चलाने का लाइसेंस होना चाहिए, बल्कि उसे कम से कम संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित किसी एक भारतीय भाषा और अंग्रेजी पढ़ने-लिखने में सक्षम होना चाहिए और साथ ही प्रशिक्षण प्रमाणपत्र भी होना चाहिए।

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कोर्ट ने कहा:

हम यह नहीं मान सकते कि इस प्रकार की प्रशिक्षण की कमी एक मामूली गलती है, जो बीमा कंपनी की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दे।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रूल 9 के तहत दिया जाने वाला प्रशिक्षण केवल आपातकालीन प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि उन्नत और रक्षात्मक ड्राइविंग कौशल को भी शामिल करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कोई तकनीकी त्रुटि नहीं थी, बल्कि चूंकि वाहन में तेल था (जो खतरनाक माल की श्रेणी में आता है), इसलिए अनुमोदन का न होना एक गंभीर चूक है।

कोर्ट ने राष्ट्रीय बीमा कंपनी बनाम स्वर्ण सिंह [(2004) 3 SCC 297] के मामले को संदर्भित करते हुए कहा:

यह देखा जाना ज़रूरी है कि ड्राइवर के पास जिस प्रकार के वाहन का लाइसेंस था, वह उस वाहन से संबंधित था या नहीं और क्या उसका अभाव दुर्घटना का मुख्य या सहायक कारण बना।”

इस मामले में यह स्पष्ट हुआ कि ड्राइवर टैंकर चलाने का अधिकृत व्यक्ति नहीं था और लापरवाही से वाहन चला रहा था, जिससे दुर्घटना हुई।

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जहां तक प्रमाणपत्र का प्रश्न है, कोर्ट ने कहा:

इस प्रमाणपत्र की सत्यता पर संदेह है… न तो इसमें कोई सीरियल नंबर है और न ही जारी करने वाले संस्थान की गोल मुहर है।”

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलें खारिज करते हुए हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा:

“हम अपीलों पर विचार करने का कोई कारण नहीं पाते और इन्हें खारिज करते हुए बीमा कंपनी को मुआवज़ा अदा करने और फिर उसे वाहन मालिक से वसूलने के निर्देश की पुष्टि करते हैं।”

मामला:
सिविल अपील संख्याएं 25789–25792 / 2019
मुकदमा:
एम/एस चठा सर्विस स्टेशन बनाम लाल मती देवी एवं अन्य

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