बीमा कंपनी गैर-महत्वपूर्ण विशेष शर्त के आधार पर दावा अस्वीकार नहीं कर सकती: सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के आदेश को रद्द किया

Sohom Shipping Pvt. Ltd. बनाम New India Assurance Co. Ltd. एवं अन्य (सिविल अपील संख्या 2323/2021) में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आयोग ने “उबेरिमा फाइडेस” (पूर्ण सद्भावना) के उल्लंघन के आधार पर अपीलकर्ता की उपभोक्ता शिकायत खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि बीमा कंपनी किसी ऐसे विशेष अनुबंधीय शर्त के उल्लंघन के आधार पर दावा अस्वीकार नहीं कर सकती, जो गैर-महत्वपूर्ण हो और जिसे निहित रूप से त्याग दिया गया हो। यह फैसला न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ द्वारा सुनाया गया।

पृष्ठभूमि:

अपीलकर्ता Sohom Shipping Pvt. Ltd., जो शिपिंग व्यवसाय में संलग्न है, ने एक नई बनी बार्ज ‘Srijoy II’ खरीदी और उसे मुंबई से कोलकाता तक की पहली यात्रा पर भेजने का निर्णय लिया। इस यात्रा के लिए कंपनी ने ‘सिंगल वॉयज परमिट’ प्राप्त किया और New India Assurance Co. Ltd. से 16 मई 2013 से 15 जून 2013 की अवधि के लिए मरीन इंश्योरेंस पॉलिसी ली।

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इस बीमा पॉलिसी में एक विशेष शर्त यह थी कि “यात्रा मानसून शुरू होने से पहले शुरू और समाप्त होनी चाहिए”, और यह वारंटी दी गई थी कि जहाज Beaufort Scale No. 4 से अधिक मौसम में रवाना नहीं होगा।

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हालांकि, जहाज ने 6 जून 2013 को यात्रा शुरू की, रत्नागिरी के पास खराब मौसम में फंस गया, इंजन फेल हो गया और अंततः जहाज फँस गया।

अपीलकर्ता ने इसे पूर्ण क्षति मानते हुए बीमा कंपनी को Notice of Abandonment भेजा, लेकिन बीमा कंपनी ने दावा अस्वीकार कर दिया, यह कहते हुए कि यात्रा मानसून शुरू होने के बाद शुरू हुई, जो कि विशेष शर्त का उल्लंघन था।

पक्षों के तर्क:

अपीलकर्ता के तर्क:

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री हुज़ैफ़ा अहमदी ने निम्न तर्क रखे:

  • विशेष शर्त गैर-महत्वपूर्ण थी।
  • बीमा कंपनी ने निहित रूप से इस शर्त को त्याग दिया था
  • यह शर्त अस्पष्ट थी, अतः इसे contra proferentem सिद्धांत के तहत बीमा कंपनी के विरुद्ध पढ़ा जाना चाहिए।
  • इस शर्त को कठोरता से लागू करने से बीमा दावा प्रणाली अर्थहीन और अव्यावहारिक हो जाती।

प्रतिवादी के तर्क:

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री देवदत्त कामत ने एनसीडीआरसी के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा:

  • विशेष शर्त स्पष्ट और निश्चित थी।
  • अपीलकर्ता ने धारा 3.1.2 का उल्लंघन किया, क्योंकि जहाज ने अधिकतर लहर ऊँचाई वाले मौसम में यात्रा की।
  • पॉलिसी की शर्त अस्पष्ट नहीं थी, अतः contra proferentem सिद्धांत लागू नहीं होता।
  • प्रस्ताव पत्र में मानसून के मौसम में यात्रा की कोई सूचना नहीं थी, बल्कि कोलकाता में जहाज को मानसून के दौरान खड़ा रखने की योजना थी।
  • प्रतिवादी ने जालसाज़ी के आरोप भी लगाए और Sea Lark Fisheries बनाम United India Insurance Co. (2008) और Hind Offshore (P) Ltd. बनाम Iffco-Tokio (2023) जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया।
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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:

अदालत ने मूल प्रश्न को यह माना कि क्या विशेष शर्त का ऐसा उल्लंघन हुआ था, जो दावे को अस्वीकार करने के लिए पर्याप्त हो? इस पर अदालत ने निम्नलिखित अवलोकन किए:

  • मानसून शुरू होने से पहले” शब्द को डायरेक्टर जनरल ऑफ शिपिंग के 25.04.2008 के सर्कुलर के अनुसार व्याख्यायित किया जा सकता है, जिसमें मानसून की शुरुआत पश्चिमी तट के लिए 1 जून और पूर्वी तट के लिए 1 मई मानी गई है।
  • विशेष शर्त अस्पष्ट नहीं थी, इसलिए contra proferentem लागू नहीं होता।
  • बीमा कंपनी को यात्रा मार्ग और बीमा लेने के उद्देश्य की जानकारी थी, और पॉलिसी की अवधि में मानसून की शुरुआत शामिल थी, अतः यह दावा कि बीमाकर्ता अनभिज्ञ था, अस्वीकार्य है।
  • यदि इस शर्त को कठोरता से लागू किया जाए, तो बीमित अवधि के दौरान यात्रा हेतु किसी भी दावे को असंभव बना दिया जाएगा, जिससे बीमा अनुबंध का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा।
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अतः कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह विशेष शर्त गैर-महत्वपूर्ण, निहित रूप से त्याग की गई, और संभवतः एक मानक शर्त थी जिसे इस विशेष पॉलिसी में लागू नहीं किया गया था। कोर्ट ने Ramji Karamsi बनाम Unique Motor and General Insurance Co. Ltd. (AIR 1951 Bom 347) पर भरोसा किया, जिसमें इसी तरह की अव्यावहारिक शर्त को दरकिनार कर दिया गया था।

निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए 13 अप्रैल 2021 का एनसीडीआरसी का आदेश रद्द कर दिया और मामला पुनः बीमा राशि निर्धारण हेतु NCDRC को वापस भेज दिया

अदालत ने दोनों पक्षों को 29 अप्रैल 2025 को आयोग के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया और आयोग से शीघ्र निर्णय लेने की अपील की, यह देखते हुए कि यह दावा 2013 से लंबित है

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि पक्षकार अपने-अपने खर्च वहन करेंगे

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