सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट को लंबित अपील शीघ्र निपटाने का निर्देश देने से इंकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट उसके सुपर्वाइजरी कंट्रोल में नहीं आते और जब वे आधी क्षमता पर काम कर रहे हैं, तो उनसे सभी मामलों का शीघ्र निपटान करने की उम्मीद करना व्यावहारिक नहीं है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें 13 साल से लंबित एक अपील के शीघ्र निस्तारण की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि अपील काफी समय से लंबित है और पहले ही दो बार शीघ्र सुनवाई हेतु आवेदन दिया जा चुका है।
इस पर न्यायमूर्ति नाथ ने कहा: “हाईकोर्ट इस अदालत के सुपर्वाइजरी कंट्रोल में नहीं हैं। यदि हाईकोर्ट आधी क्षमता पर कार्य कर रहे हैं तो आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वे सभी मामलों का उतनी शीघ्रता से निपटारा करेंगे, जितना आप चाहते हैं? पुराने मामले पहले से लंबित हैं। जाइए और आवेदन दीजिए।”

पीठ ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट में पुनः शीघ्र सूचीबद्ध करने के लिए आवेदन करने की अनुमति दी और कहा कि ऐसे आवेदन दायर किए जाने पर उन पर विचार किया जाएगा। न्यायमूर्ति नाथ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने अधिवक्ता काल को याद करते हुए टिप्पणी की: “दो आवेदन कुछ भी नहीं हैं। आपको सैकड़ों आवेदन देने पड़ सकते हैं ताकि आपका मामला सूचीबद्ध हो।”
यह टिप्पणी उच्च न्यायालयों में खाली पदों से उत्पन्न गंभीर संकट को उजागर करती है। कानून मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देशभर के हाईकोर्ट की कुल स्वीकृत न्यायाधीश संख्या 1,122 है, लेकिन 1 सितम्बर तक केवल 792 न्यायाधीश कार्यरत थे, जबकि 330 पद रिक्त हैं।
यह लगातार बनी कमी सीधे तौर पर मामलों के त्वरित निपटारे की क्षमता को प्रभावित करती है, जिसके चलते litigants को वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न्यायपालिका में लंबे समय से चले आ रहे संकट की ओर इशारा करती है—समय पर नियुक्तियों में देरी और न्यायाधीशों की कमी—जिससे लाखों मामले लंबित हो रहे हैं। अदालत ने दोहराया कि इस प्रकार की समस्याओं का समाधान संबंधित हाईकोर्ट में बार-बार आवेदन देकर ही संभव है।