सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद के पास पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर गंभीर चिंता जताते हुए पर्यावरण और पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए “हरसंभव कदम उठाने” की बात कही है। अदालत ने इस मामले में तेलंगाना सरकार के रवैये को लेकर भी सवाल उठाए हैं।
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें तेलंगाना सरकार द्वारा विश्वविद्यालय से सटे 400 एकड़ के विकास परियोजना में से 100 एकड़ क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को चुनौती दी गई है। पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि वह इतनी “तेजी” में पेड़ों की कटाई क्यों कर रही है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने उन वीडियो का हवाला दिया जिनमें जानवरों को पेड़ों की कटाई के चलते आश्रय की तलाश में भागते हुए देखा गया। इस पर कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी, जो राज्य की ओर से पेश हुए, से कहा, “आपको एक स्पष्ट योजना बनानी होगी कि इन 100 एकड़ भूमि को कैसे पुनर्स्थापित किया जाएगा।”

कोर्ट ने तेलंगाना के वाइल्डलाइफ वॉर्डन को तत्काल कदम उठाने और क्षेत्र के वन्यजीवों की रक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “पर्यावरण और पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए हम कोई भी असाधारण कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे।”
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 15 मई के लिए तय की है और तब तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है। पीठ ने कहा, “इस बीच एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा।”
यह विवाद तब शुरू हुआ जब तेलंगाना सरकार ने कान्चा गाचीबोवली क्षेत्र के जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू की, जिससे छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में आक्रोश फैल गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 3 अप्रैल को स्वतः संज्ञान लेते हुए इसे “बेहद गंभीर” पर्यावरणीय मामला बताया था।