उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी सड़क दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त होता है, तो मोटर वाहन अधिनियम के तहत मिलने वाले मुआवज़े की गणना करते समय, ट्रिब्यूनल को पहले मृतक की आय हानि का आकलन करना होगा और फिर हरियाणा सरकार के मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को वित्तीय सहायता देने के लिए लागू 2006 के नियमों (Rules of 2006) के अंतर्गत दी जाने वाली सहायता को उस राशि से घटाना होगा।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने यह निर्णय न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम कमलेश एवं अन्य के मामले में सुनाया।
पृष्ठभूमि
इस मामले की शुरुआत एक सड़क दुर्घटना से हुई, जिसमें एक सरकारी कर्मचारी की मृत्यु हो गई। मृतक के परिजनों ने मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत मुआवज़े की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप मोटर वाहन दावा अधिकरण (MACT) ने ₹37,85,800 का मुआवज़ा प्रदान किया।

इंश्योरेंस कंपनी ने इस निर्णय को चुनौती दी और कहा कि ट्रिब्यूनल ने 2006 के नियमों के तहत दी गई वित्तीय सहायता की उचित कटौती नहीं की। वहीं, परिजनों ने मुआवज़े की राशि बढ़ाने की मांग की।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मुआवज़े को बढ़ाकर ₹45,14,986 कर दिया और ₹21,67,704 की कटौती 2006 के नियमों के तहत की। इसके विरुद्ध दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
पक्षकारों की दलीलें
बीमा कंपनी की ओर से डॉ. मीरा अग्रवाल ने रिलायंस जनरल इंश्योरेंस बनाम शशि शर्मा (2016) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि मृत सरकारी कर्मी को Rules of 2006 के अंतर्गत दी गई संपूर्ण राशि को मुआवज़े से घटाया जाना चाहिए ताकि दोहरी राहत से बचा जा सके।
वहीं, परिजनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एम.आर. शमशाद ने हेलेन सी. रेबेलो बनाम महाराष्ट्र राज्य परिवहन निगम (1999) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि जीवन बीमा या पेंशन जैसी सहायता को मुआवज़े से नहीं घटाया जा सकता।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि शशि शर्मा का निर्णय अभी भी मान्य और बाध्यकारी है और हेलेन सी. रेबेलो के सिद्धांत इस विशेष मामले पर लागू नहीं होते क्योंकि 2006 के नियमों के अंतर्गत दी जाने वाली सहायता सीधे तौर पर मृतक की वेतन हानि की भरपाई करती है, जबकि बीमा या पेंशन ऐसी राशि नहीं है जिसका स्रोत मृत्यु से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हो।
पीठ ने कहा:
“क्या परिजनों को वेतन और भत्तों की क्षति के लिए मुआवज़ा दिया जा सकता है, जबकि उन्हीं वेतन और भत्तों की राशि Rules of 2006 के तहत पहले ही दी जा रही है — इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक है क्योंकि इससे दोहरी राहत प्राप्त हो जाएगी।”
कोर्ट ने सेबास्टियानी लकड़ा बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2019) के निर्णय का भी हवाला दिया, जिसने हेलेन सी. रेबेलो के सिद्धांत को स्वीकार किया लेकिन शशि शर्मा को अलग संदर्भ में मान्य ठहराया।
मुआवज़े की गणना
मृतक की आय ₹30,107 प्रति माह थी और उनकी आयु 43 वर्ष थी। कोर्ट ने 14 का गुणक (multiplier) लगाते हुए, 30% भविष्य की संभावनाएं और 25% व्यक्तिगत व्यय की कटौती करते हुए कुल आय हानि ₹49,31,527 आंकी।
इसमें से ₹43,35,408, जो कि Rules of 2006 के अंतर्गत दी गई सहायता थी, घटाई गई। इसके अतिरिक्त ₹1,60,000 (पति/पत्नी और तीन बच्चों के लिए परितोष का नुकसान) और ₹30,000 (अंत्येष्टि एवं संपत्ति हानि) जोड़े गए।
अंतिम कुल मुआवज़ा: ₹7,86,119।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जो राशि पहले ही दी जा चुकी है, उसकी वापसी नहीं की जाएगी।
निर्णय और दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जब मृतक सरकारी कर्मचारी हो और Rules of 2006 लागू होते हों, तो पहले मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार सारला वर्मा और प्रणय सेठी के सिद्धांतों पर आधारित आय हानि का निर्धारण किया जाए और फिर सरकारी सहायता को घटाया जाए।
कोर्ट ने कहा:
“Tribunal को चाहिए कि पहले मृत सरकारी कर्मचारी की आय हानि का आकलन करें और फिर Rules of 2006 के तहत मिलने वाली राशि को उससे घटाएं। यदि मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवज़ा ज्यादा बनता है, तो अंतर की राशि परिजनों को दी जानी चाहिए।”