छात्र आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता जताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में न केवल 17 वर्षीय नीट अभ्यर्थी की संदिग्ध मौत की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंप दी है, बल्कि देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों—स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटरों—के लिए छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर व्यापक अंतरिम दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें मामले की सीबीआई जांच से इनकार किया गया था।
पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह मामला सिर्फ एक छात्र की मृत्यु तक सीमित नहीं है, बल्कि यह “छात्र संकट की एक प्रणालीगत समस्या” को दर्शाता है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए ऐसे दिशानिर्देश बनाए हैं जो तब तक बाध्यकारी रहेंगे जब तक कि संसद इस विषय पर कोई कानून नहीं बनाती।
मामला: 17 वर्षीय छात्रा की रहस्यमयी मृत्यु
यह अपील पश्चिम बंगाल निवासी सुकदेब साहा द्वारा दायर की गई थी, जिनकी 17 वर्षीय पुत्री ‘एक्स’ की 16 जुलाई 2023 को मृत्यु हो गई थी। वह मई 2022 से विशाखापट्टनम स्थित आकाश बायजूस संस्थान में नीट की तैयारी कर रही थीं और “साधना लेडीज़ हॉस्टल” में रह रही थीं, जो कोचिंग संस्थान द्वारा सुझाया गया था।

14 जुलाई 2023 को पिता को सूचना मिली कि उनकी बेटी हॉस्टल की तीसरी मंज़िल से गिर गई है और गंभीर रूप से घायल अवस्था में वेंकटारमणा अस्पताल में भर्ती है। जब वह अगले दिन विशाखापट्टनम पहुंचे, तब तक वह वेंटिलेटर पर थीं। पिता ने इलाज से असंतुष्ट होकर उन्हें दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कराया, लेकिन 16 जुलाई को उनकी मृत्यु हो गई।
स्थानीय पुलिस ने प्रारंभिक रूप से CrPC की धारा 174 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। लेकिन पिता ने जांच की निष्क्रियता का आरोप लगाते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर कीं। कोर्ट ने कुछ अंतरिम राहत दी, जैसे कि CCTV फुटेज को सुरक्षित करने के लिए एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति और फॉरेंसिक नमूनों को AIIMS दिल्ली भेजना, लेकिन मुख्य FIR को CBI को स्थानांतरित करने की याचिका खारिज कर दी। इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की गई थी।
अपीलकर्ता के तर्क:
वकील ने स्थानीय पुलिस जांच को “मनमानी और सतही” बताया। उन्होंने तर्क दिया कि:
- चिकित्सीय लापरवाही: वेंकटारमणा अस्पताल में छात्रा को होश में होने के बावजूद बिना माता-पिता की अनुमति के वेंटिलेटर पर रखा गया, और कोई बयान दर्ज नहीं किया गया।
- सबूतों के साथ लापरवाही: पुलिस ने एडवोकेट कमिश्नर के साथ सहयोग नहीं किया, ना ही CCTV फुटेज जब्त की, ना ही फॉरेंसिक सैंपल लिए।
- CCTV में विसंगति: एक फुटेज में छात्रा सलवार पहने दिखी, जबकि गिरने वाली लड़की नीली हाफ पैंट में थी—जो उसकी पहचान पर संदेह पैदा करता है।
- रिपोर्ट्स को छिपाना: केमिकल एनालिसिस और मृत्यु के कारणों की अंतिम रिपोर्ट को जानबूझकर रोका गया।
- हितों का टकराव: एक ही डॉक्टर ने पोस्टमार्टम, केमिकल परीक्षण और जांच समिति में भाग लिया—जिसे कोर्ट ने “गंभीर हितों का टकराव” माना।
प्रतिवादी पक्ष के तर्क:
प्रतिवादियों ने कहा कि जांच में 40 से अधिक गवाहों के बयान लिए गए, फॉरेंसिक रिपोर्ट भेजी गई और धारा 304 भाग-2 IPC के तहत मामला बदला गया—जो जांच की गंभीरता को दर्शाता है। साथ ही कहा गया कि:
- छात्रा को मानक चिकित्सकीय प्रक्रिया के तहत उपचार मिला।
- हॉस्टल की जिम्मेदारी संस्थान की नहीं थी।
- शिकायतकर्ता की असंतुष्टि CBI जांच का पर्याप्त कारण नहीं बनती, जैसा कि अर्णब गोस्वामी बनाम भारत संघ में कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
पीठ ने माना कि CBI को जांच सौंपना “असाधारण उपाय” है, लेकिन इस मामले में यह आवश्यक था क्योंकि:
- आत्महत्या का सिद्धांत अधूरा था, कोई सुसाइड नोट या मानसिक बीमारी का रिकॉर्ड नहीं था।
- CCTV फुटेज में विरोधाभास को पुलिस ने कभी स्पष्ट नहीं किया।
- AIIMS रिपोर्ट के अनुसार छात्रा भर्ती के समय “सचेत और उत्तेजित अवस्था” में थीं, जबकि मेडिकल रिकॉर्ड ने उन्हें बेहोश बताया था।
- फॉरेंसिक चूक: विसरा का जल्द नष्ट किया जाना जांच को अपूरणीय रूप से प्रभावित करता है।
- ऑटोप्सी रिपोर्ट में “अधपचा भोजन और पेट से संदेहास्पद गंध” का जिक्र आत्महत्या के दावे से मेल नहीं खाता।
- रिपोर्ट्स को रोके रखना जांच की ईमानदारी पर सवाल खड़ा करता है।
कोर्ट ने इसे “दुर्लभ और असाधारण” मामला मानते हुए CBI जांच को अनिवार्य ठहराया और आंध्र प्रदेश पुलिस को आदेश दिया कि वह सभी केस रिकॉर्ड CBI को तुरंत सौंपे। CBI को 4 माह में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
भाग-2: छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर दिशानिर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह मामला अलग-थलग नहीं देखा जा सकता। NCRB के अनुसार 2022 में 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की, जो एक “गंभीर संकट” की ओर इशारा करता है।
अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करते हुए, और विशाखा बनाम राज्य मामले की तर्ज पर, कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों के लिए बाध्यकारी अंतरिम दिशानिर्देश जारी किए:
मुख्य दिशानिर्देश:
- मानसिक स्वास्थ्य नीति: सभी संस्थानों को एक समान नीति अपनानी और प्रचारित करनी होगी।
- काउंसलर की नियुक्ति: 100 से अधिक छात्रों वाले संस्थानों में कम से कम एक योग्य मानसिक स्वास्थ्य काउंसलर अनिवार्य।
- पब्लिक शेमिंग पर रोक: कोचिंग सेंटरों में छात्रों को उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के आधार पर अलग-अलग बैच में डालने या सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने की अनुमति नहीं।
- संस्थागत जिम्मेदारी: उत्पीड़न या भेदभाव की शिकायतों पर कार्रवाई न करने को “संस्थागत दायित्व” माना जाएगा।
- सुरक्षा उपाय: हॉस्टल में पंखे टैम्पर-प्रूफ होने चाहिए और खतरनाक स्थानों तक पहुंच सीमित होनी चाहिए।
- कैरियर काउंसलिंग: छात्रों पर अवास्तविक दबाव को कम करने के लिए नियमित मार्गदर्शन अनिवार्य।
- निगरानी समिति: हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में निगरानी समिति का गठन होगा।
केंद्र सरकार को 90 दिन के भीतर अनुपालन शपथ-पत्र दाखिल करने का आदेश दिया गया है। अगली सुनवाई 27 अक्टूबर 2025 को निर्धारित की गई है।