सुप्रीम कोर्ट में ₹2.6 करोड़ की लागत से लगाए गए ग्लास पार्टिशन को एक साल के भीतर हटाने पर ₹8.6 लाख का अतिरिक्त खर्च आया है। यह जानकारी इंडिया टुडे के पत्रकार अशोक कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक RTI आवेदन के माध्यम से सामने आई है। इस खुलासे ने देश की सर्वोच्च अदालत में किए गए इस खर्च पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि कुल ₹2.68 करोड़ का सार्वजनिक धन पहले ग्लास लगाने और फिर उन्हें हटाने में खर्च हुआ।
नवंबर 2022 से मई 2025 तक मुख्य न्यायाधीश (CJI) रहे न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में कई आधुनिक सुधारों की शुरुआत हुई। इनमें सबसे प्रमुख और दृश्य बदलाव था — पहले पांच कोर्टरूम के बाहर ऐतिहासिक गलियारों में ग्लास पार्टिशन लगाना। इसका उद्देश्य केन्द्रीयकृत एयर कंडीशनिंग की सुविधा देना और कोर्ट का बुनियादी ढांचा बेहतर करना था।
हालांकि, इस बदलाव का सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि इन ग्लास पैनलों ने गलियारों में जगह कम कर दी, भीड़भाड़ के समय वकीलों की आवाजाही बाधित हुई और उन्हें इस बदलाव पर सलाह-मशविरा नहीं किया गया, जबकि वे कोर्ट के प्रमुख हितधारक हैं।

चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद, SCBA ने उनके उत्तराधिकारी मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से गलियारों को पूर्ववत करने का अनुरोध किया। हालांकि, खन्ना के कार्यकाल में कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला, उन्होंने सार्वजनिक रूप से कोर्ट को इसके “मूल स्वरूप” में लौटाने की प्रतिबद्धता जताई।
सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों की एक पूर्ण बैठक (Full Court) में इस मुद्दे पर चर्चा की गई और सर्वसम्मति से ग्लास पार्टिशन को हटाने का फैसला लिया गया। जून 2025 में यह काम पूरा हुआ।
RTI के मुताबिक, ग्लास लगाने का कुल खर्च ₹2,59,79,230 रहा, जिसे M/s बी.एम. गुप्ता एंड संस ने CPWD ई-टेंडर पोर्टल के माध्यम से चुने जाने के बाद पूरा किया था। हटाने की प्रक्रिया पर ₹8,63,700 का अतिरिक्त खर्च आया। इस प्रकार, कुल ₹2.68 करोड़ सुप्रीम कोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च हुए — जो अंततः करदाताओं की जेब से जाता है क्योंकि कोर्ट का बजट केंद्र सरकार के न्यायिक सेवा मद से आता है।
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि ग्लास हटाने का निर्णय सिर्फ नए मुख्य न्यायाधीश का आदेश नहीं, बल्कि सभी जजों का सामूहिक निर्णय था।
ग्लास हटाना ही नहीं, न्यायमूर्ति गवई ने एक और बड़ा प्रशासनिक परिवर्तन किया — सुप्रीम कोर्ट के लोगो को फिर से भारतीय राज्य प्रतीक चिन्ह के साथ पूर्ववत किया, जिसे सितंबर 2024 में चंद्रचूड़ के कार्यकाल में बदला गया था।
स्रोत: इंडिया टुडे