सुप्रीम कोर्ट ने कोविड के बाद यूपी के निजी स्कूलों से फीस वापसी के दावों की समीक्षा के लिए समिति नियुक्त की

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश के निजी स्कूलों की वित्तीय स्थिति की जांच के लिए दो सदस्यीय विशेष समिति का गठन किया है। ये वे स्कूल हैं जिन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें 2020-21 शैक्षणिक सत्र के दौरान वसूली गई फीस का 15% या तो समायोजित करने या वापस करने का निर्देश दिया गया था।

इस समिति का नेतृत्व दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस (रिटायर्ड) जीपी मित्तल और चार्टर्ड अकाउंटेंट अधीश मेहरा करेंगे। इस समिति को प्रत्येक स्कूल की वित्तीय स्थिति का गहन विश्लेषण करने और यह निर्धारित करने की जिम्मेदारी दी गई है कि महामारी के दौरान स्कूलों द्वारा वसूली गई फीस कितनी न्यायसंगत थी।

सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस संजय कुमार और केवी विश्वनाथन भी शामिल थे, ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में एक “सामान्य दृष्टिकोण” अपनाया है, जबकि प्रत्येक स्कूल की वित्तीय स्थिति अलग-अलग हो सकती है।

चीफ जस्टिस खन्ना ने कहा, “हमें प्रत्येक मामले की अलग-अलग जांच करनी होगी। यदि किसी स्कूल ने अधिक शुल्क लिया है, तो उसे वापस करना होगा, लेकिन अगर किसी स्कूल की वित्तीय स्थिति खराब है, तो इसे भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप से महामारी के दौरान निजी स्कूलों की वित्तीय स्थिति और शुल्क संरचना को लेकर जारी बहस एक बार फिर जोर पकड़ सकती है। महामारी के दौरान कई स्कूलों ने कम फीस वसूली, शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन में कटौती की और ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था करने में अतिरिक्त खर्च भी उठाया।

2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मुद्दे की विस्तृत जांच की मंशा जाहिर कर दी थी और संबंधित स्कूलों को अपने वित्तीय दस्तावेज, शिक्षकों व कर्मचारियों के वेतन में किसी भी कटौती का विवरण, और उस अवधि के लिए किए गए दैनिक खर्चों का ब्यौरा देने का निर्देश दिया था।

READ ALSO  समलैंगिक जोड़े इच्छानुसार रहने के लिए स्वतंत्र, उन्हें धमकाएं नहीं: महिला के परिवार से हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट का मूल आदेश उत्तर प्रदेश में स्कूल फीस के नियमन की एक बड़ी पहल का हिस्सा था, जिसे राज्यभर के माता-पिता की शिकायतों के बाद जारी किया गया था। उन्होंने दावा किया था कि लॉकडाउन के दौरान कई स्कूलों ने वे सुविधाएं नहीं दीं, जिनके लिए फीस वसूली गई थी।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व निर्णय पर भरोसा किया था, जिसमें कहा गया था कि सेवाएं दिए बिना निजी स्कूलों द्वारा शुल्क वसूलना मुनाफाखोरी और शिक्षा का व्यवसायीकरण करने के समान है।

READ ALSO  No Evidence that the Accused Instigated the Labourers to Murder Director: Supreme Court Overturns Conviction U/s 302 IPC

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित यह समिति चार महीनों के भीतर अपनी जांच पूरी करेगी। इस दौरान, स्कूलों को अपने सभी वित्तीय दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। इस कानूनी और वित्तीय समीक्षा से यह स्पष्ट होगा कि महामारी के दौरान लिए गए शुल्क को लेकर शिक्षा क्षेत्र में किस प्रकार का संतुलन स्थापित किया जा सकता है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles