सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जब पति-पत्नी के बीच सुलह की कोई संभावना न बची हो, तो ऐसे मृत-प्राय विवाह को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक शिक्षक दंपत्ति के विवाह को भंग कर दिया, जो पिछले 20 वर्षों से अलग रह रहे थे। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने माना कि यह विवाह “अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है” (Irretrievably broken down) और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें तलाक की याचिका खारिज कर दी गई थी। कोर्ट ने पति को निर्देश दिया है कि वह पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ते (Permanent Alimony) के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान करे।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता-पति और प्रतिवादी-पत्नी का विवाह 22 जून 2003 को मोरिंडा, जिला रोपड़, पंजाब में हुआ था। दोनों पक्ष पेशे से शिक्षक हैं और इस विवाह से उनकी कोई संतान नहीं है।
अपीलकर्ता के अनुसार, शादी के कुछ समय बाद ही संबंधों में खटास आ गई थी। पति का आरोप था कि फरवरी 2005 में जब वह एक दुर्घटना का शिकार हुआ, तो पत्नी ने उसकी देखभाल नहीं की और दबाव में उससे कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराने की कोशिश की। इस विवाद के चलते पति ने पत्नी और उसके परिवार के खिलाफ निषेधाज्ञा (Injunction) के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया था, जिसे बाद में समझौते के आधार पर वापस ले लिया गया।
नवंबर 2005 में दोनों नवांशहर चले गए, लेकिन इसके तुरंत बाद पत्नी वैवाहिक घर छोड़कर चली गई और वापस नहीं लौटी। पति ने शुरू में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना (Restitution of Conjugal Rights) के लिए याचिका दायर की थी, जिसे 2007 में वापस ले लिया गया था।
इसके बाद, 14 दिसंबर 2009 को पति ने क्रूरता और परित्याग (Cruelty and Desertion) के आधार पर तलाक के लिए धारा 13 के तहत याचिका दायर की। ट्रायल कोर्ट ने 14 अगस्त 2012 को यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि पति अपने आरोपों को साबित करने में विफल रहा। इसके बाद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भी 28 फरवरी 2014 को पति की अपील खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता-पति ने तर्क दिया कि विवाह व्यावहारिक रूप से समाप्त हो चुका है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दोनों पक्ष लगभग दो दशकों से अलग रह रहे हैं और उनके बीच के मतभेद अब सुलझाए नहीं जा सकते। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करते हुए विवाह को भंग कर दिया जाए।
दूसरी ओर, प्रतिवादी-पत्नी ने तलाक की याचिका का विरोध किया। उनका तर्क था कि पति ने सुलह के लिए कोई ईमानदार प्रयास नहीं किया है। उन्होंने अपने ऊपर लगाए गए क्रूरता के आरोपों का खंडन किया और कहा कि यह मामला अनुच्छेद 142 की शक्तियों के प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं है।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और उनसे व्यक्तिगत रूप से बातचीत करने के बाद, पीठ ने पाया कि यह निर्विवाद तथ्य है कि दंपत्ति लगभग 20 वर्षों से अलग रह रहा है। कोर्ट ने नोट किया कि सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र (Mediation Centre) में भेजे जाने सहित कई अवसरों के बावजूद, उनके बीच कोई समझौता नहीं हो सका।
विवाहिक बंधन को कानूनी रूप से बनाए रखने की निरर्थकता पर टिप्पणी करते हुए, कोर्ट ने कहा:
“इस स्तर पर, पक्षों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं दिखाई देती है। ऐसी परिस्थितियों में वैवाहिक बंधन को जारी रखने का कोई सार्थक उद्देश्य नहीं होगा और यह केवल दोनों पक्षों की पीड़ा को ही बढ़ाएगा। इसलिए, हमारा सुविचारित मत है कि यह एक उपयुक्त मामला है जहां विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है, और संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इस न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग आवश्यक है।”
स्थायी गुजारा भत्ते पर निर्णय
विवाह विच्छेद का निर्णय लेने के बाद कोर्ट ने स्थायी गुजारा भत्ते (Permanent Alimony) के मुद्दे पर विचार किया। दोनों पक्ष पंजाब सरकार के स्कूलों में कार्यरत हैं। सुनवाई के दौरान पति ने 15 लाख रुपये देने की पेशकश की थी, लेकिन कोर्ट ने अलगाव की लंबी अवधि और परिस्थितियों को देखते हुए इस राशि को बढ़ाने का निर्णय लिया।
पीठ ने आदेश दिया:
“पक्षों की संबंधित स्थिति, उनके लंबे अलगाव और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हमारा विचार है कि 20,00,000/- रुपये (बीस लाख रुपये मात्र) की राशि स्थायी गुजारा भत्ते के रूप में एकमुश्त निपटान (One-time settlement) के लिए उचित और न्यायसंगत होगी।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (आदेश दिनांक 28 फरवरी 2014) और अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (आदेश दिनांक 14 अगस्त 2012) के फैसलों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विवाह को भंग कर दिया, बशर्ते अपीलकर्ता दो महीने के भीतर पत्नी को 20 लाख रुपये का भुगतान करे।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि भुगतान के साथ ही पक्षों के बीच लंबित कोई भी दीवानी या आपराधिक कार्यवाही बंद मानी जाएगी।
केस डिटेल्स:
- केस टाइटल: जतिंदर कुमार बनाम जीवन लता
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या [] / 2025 (एस.एल.पी. (सी) संख्या 35588/2025 @ D.17190/2024 से उद्भूत)
- कोरम: न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता

