बाल संरक्षण सर्वोपरि: हिरासत विवादों में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि अलग रह रहे माता-पिता के बीच हिरासत विवादों में बच्चों की भलाई सर्वोपरि होनी चाहिए। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के वर्ष 2014 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पिता को हर महीने 15 दिन के लिए बच्चों की अंतरिम हिरासत दी गई थी। शीर्ष अदालत ने उस व्यवस्था को “अव्यवहारिक” और बच्चों के हितों के लिए “हानिकारक” करार दिया।

यह मामला एक महिला सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल से जुड़ा था, जिन्होंने हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उनके सिंगापुर निवासी अलग रह रहे पति के पक्ष में फैसला दिया गया था। यह दंपति 2014 में विवाहबंधन में बंधा था और इनके दो छोटे बच्चे हैं। वर्ष 2017 में दोनों के बीच मतभेदों के चलते अलगाव हुआ, हालांकि 2021 में कुछ समय के लिए वे साथ भी रहे।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भाई को अनुकंपा नियुक्ति दी, न कि अलग रह रही विधवा को जिसने पति के खिलाड़ लिखाया था आपराधिक मुकदमा

फैसले में न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने लिखा, “यह अंतरिम व्यवस्था बच्चों की मानसिक और शारीरिक भलाई के लिए न तो व्यावहारिक है और न ही अनुकूल।” उन्होंने बच्चों की स्थिरता, पोषण और भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

Video thumbnail

हालांकि अदालत ने यह माना कि पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण में सक्रिय भूमिका निभाने की ईमानदार इच्छा रखते हैं, लेकिन बच्चों की आवश्यकताओं से समझौता किए बिना पारिवारिक जुड़ाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हिरासत की शर्तों में संशोधन किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने पिता को यह अधिकार दिया कि वे अपनी बेटी के साथ हर दूसरे सप्ताहांत समय बिता सकते हैं और बेटे से सप्ताह में एक बार चार घंटे तक निगरानी में मिल सकते हैं।

READ ALSO  सीजेआई समेत सुप्रीम कोर्ट के जजों को 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले प्राणप्रतिष्ठा समारोह के लिए आमंत्रित किया गया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles