सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक विवादास्पद वैवाहिक विवाद का निपटारा करते हुए एक दंपति को तलाक दे दिया और पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पूर्व पत्नी को गुज़ारा भत्ते के रूप में मुंबई का एक फ्लैट सौंपे। यह मामला तब सुर्खियों में आया था जब महिला ने अपने पति से ₹12 करोड़ और मुंबई में एक फ्लैट की मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दोनों पक्षों की सहमति से तलाक को अंतिम रूप दिया। समझौते के अनुसार, पति को मुंबई के प्रसिद्ध ‘कल्पतरु’ हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में स्थित फ्लैट महिला को देना होगा।
सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि यह विवाह केवल 18 महीने ही चला था। 21 जुलाई को हुई पिछली सुनवाई में पीठ ने महिला की भारी-भरकम मांगों पर चिंता जताई थी, खासकर उसकी पेशेवर योग्यता और कम अवधि की शादी को देखते हुए।

मुख्य न्यायाधीश गवई ने महिला से कहा,
“आपने MBA किया है और IT सेक्टर में काम किया है। बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में आप काम कर सकती हैं। फिर नौकरी क्यों नहीं कर रहीं?”
उन्होंने आगे टिप्पणी की,
“यह शादी केवल 18 महीने चली। और आप एक महीने में एक करोड़ की मांग कर रही हैं?”
पति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान (सहायक अधिवक्ता प्रभजीत जौहर के साथ) ने दलील दी कि महिला की मांगें कानूनी अधिकार से परे हैं और अत्यधिक हैं।
“वह पढ़ी-लिखी है और काम करने में सक्षम है,” दीवान ने कहा।
कोर्ट ने पति की आयकर विवरणियां मंगवाईं ताकि न्यायसंगत समाधान तक पहुंचा जा सके। साथ ही यह स्पष्ट किया गया कि महिला ससुर की संपत्ति पर अधिकार नहीं जता सकती।
अंततः अदालत ने महिला को दो विकल्प दिए — या तो वह बिना किसी कानूनी विवाद के फ्लैट स्वीकार करे, या ₹4 करोड़ की एकमुश्त राशि ले। महिला ने फ्लैट को चुनने का फैसला किया।
मुख्य न्यायाधीश ने वित्तीय आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देते हुए कहा,
“आप पढ़ी-लिखी हैं। आपको भीख पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। आपको खुद कमाकर गरिमा के साथ जीना चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा,
“जो लोग शिक्षित और सक्षम हैं, उन्हें जानबूझकर बेरोजगारी नहीं चुननी चाहिए और फिर बढ़ा-चढ़ाकर गुज़ारा भत्ते की मांग नहीं करनी चाहिए।”
कोर्ट ने दोनों पक्षों की सहमति के आधार पर तलाक की डिक्री पारित की और मामला समाप्त कर दिया।