उज्जैन की 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग खारिज: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को किया निरस्त

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने उस याचिका को अस्वीकार कर दिया था जिसमें उज्जैन की लगभग 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद के पुनर्निर्माण के निर्देश मांगे गए थे। यह मस्जिद इस वर्ष जनवरी में महाकाल लोक परिसर के पार्किंग क्षेत्र के विस्तार के लिए भूमि अधिग्रहण के बाद तोड़ी गई थी।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के 7 अक्टूबर के आदेश में दखल देने से इनकार किया। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पहले एकल न्यायाधीश द्वारा मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग वाली याचिका खारिज करने के आदेश को बरकरार रखा था।

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सुनवाई के दौरान 13 याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता ने दलील दी कि यह मस्जिद वर्ष 1985 में वक्फ संपत्ति घोषित की गई थी, फिर भी इसे केवल पार्किंग की आवश्यकता के कारण तोड़ा गया। अधिवक्ता ने कहा, “किसी अन्य धार्मिक स्थल के लिए पार्किंग चाहिए, इसलिए मस्जिद को तोड़ दिया और अब कहा जा रहा है कि हमारा कोई अधिकार नहीं।”

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इस पर पीठ ने टिप्पणी की, “यह वैधानिक योजना के तहत किया गया था, मुआवजा दिया गया। आपने उसी भूमि अधिग्रहण को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी, जिसे बाद में वापस ले लिया गया।”

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अंततः अदालत ने कहा, “अब बहुत देर हो चुकी है, कुछ नहीं किया जा सकता। याचिका खारिज की जाती है,” और यह भी जोड़ा कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में पर्याप्त तर्क दिए हैं।

हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि वे उज्जैन के निवासी हैं और तकिया मस्जिद में नमाज़ अदा करते थे। वहीं प्रशासन ने बताया था कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया विधि सम्मत तरीके से पूरी की गई, मुआवजा दे दिया गया और भूमि अब राज्य सरकार के स्वामित्व में है।

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में कहा था, “याचिकाकर्ताओं को मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग करने का कोई लोकस स्टैंडी नहीं है। हमें रिट कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं दिखता।” अदालत ने यह भी माना कि पार्किंग क्षेत्र के विस्तार हेतु मस्जिद का ध्वस्तीकरण अवैध नहीं था।

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जनवरी में हुई तकिया मस्जिद की तोड़फोड़ महाकाल लोक परियोजना के तहत भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया का हिस्सा थी, जो उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर परिसर के पुनर्विकास और तीर्थ सुविधाओं के विस्तार से जुड़ी एक प्रमुख पहल है।

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