सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें चेन्नई के सैन्य क्वार्टर में स्थित मस्जिद में आम नागरिकों को नमाज़ पढ़ने की अनुमति न देने पर आपत्ति उठाई गई थी। अदालत ने साफ कहा कि मसला सैन्य क्षेत्र का है और इसमें सुरक्षा से जुड़ी गंभीर बातें शामिल हो सकती हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह आदेश मद्रास हाईकोर्ट के अप्रैल 2025 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने भी सेना के उस निर्णय में दखल देने से इनकार कर दिया था, जिसमें ‘मस्जिद-ए-आलिशान’ में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि 1877 से 2022 तक नागरिकों को मस्जिद में प्रवेश की अनुमति थी और कोविड-19 महामारी के दौरान ही यह रोक लगाई गई थी। इसलिए, पुराने प्रचलन को बहाल किया जाना चाहिए।
पीठ ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा—
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने शिकायत की थी कि सेना नागरिकों को सैन्य परिसर के भीतर मस्जिद में नमाज़ पढ़ने नहीं दे रही है। स्टेशन कमांडर ने जून 2021 में मौखिक आदेश से याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि यह मस्जिद मुख्य रूप से यूनिट से जुड़े कर्मियों के उपयोग के लिए है और Cantonment Land Administration Rules, 1937 के अनुसार बाहरी लोगों के प्रवेश की अनुमति नहीं है।
डिवीजन बेंच ने कहा था—
हाईकोर्ट ने माना था कि जब सैन्य प्रशासन ने 1937 के नियमों के आधार पर निर्णय लेने का अधिकार इस्तेमाल किया है, तो उसमें दखल नहीं किया जा सकता।
सारी दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि सैन्य क्षेत्र के भीतर किसी भी स्थान—चाहे वह उपासना स्थल ही क्यों न हो—में बाहरी लोगों के प्रवेश का निर्णय पूरी तरह सैन्य प्रशासन की विवेकाधीन शक्ति है, खासकर जब सुरक्षा कारण बताए गए हों।




