केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें आईपीएस अधिकारियों की केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) में डेप्युटेशन घटाने और छह माह में कैडर समीक्षा करने के अपने 23 मई के फैसले की समीक्षा की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने केंद्र की समीक्षा याचिका को चैंबर्स में विचार कर खारिज कर दिया। आदेश में कहा गया, “हमने समीक्षा याचिका की सामग्री और संलग्न दस्तावेजों का सावधानीपूर्वक परीक्षण किया है और हमें यह संतोष है कि 23 मई 2025 के निर्णय की समीक्षा का कोई आधार नहीं बनता है।”
पीठ ने खुली अदालत में मौखिक सुनवाई की केंद्र की मांग भी ठुकरा दी और कहा, “समीक्षा याचिका, तदनुसार, खारिज की जाती है।”
 
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के 23 मई के फैसले की समीक्षा की मांग की थी। उस फैसले में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका (सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया था कि वह आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एसएसबी समेत सभी सीएपीएफ का कैडर रिव्यू छह माह के भीतर पूरा करे, जो वर्ष 2021 से लंबित था।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली एक्शन-टेकन रिपोर्ट मिलने के तीन माह के भीतर आवश्यक निर्णय ले।
23 मई के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (SAG) तक के पदों पर आईपीएस अधिकारियों की डेप्युटेशन को दो वर्षों के भीतर क्रमशः घटाया जाए। अदालत ने कहा कि इससे सीएपीएफ अधिकारियों में पदोन्नति की गतिशीलता बढ़ेगी और वर्षों से लंबित ठहराव (stagnation) की समस्या कम होगी।
फैसले में कहा गया था,
“कैडर अधिकारियों की सेवा गतिशीलता और ठहराव दूर करने के उद्देश्य के साथ-साथ बलों की परिचालनात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, हम यह मानते हैं कि सीएपीएफ के कैडर में डेप्युटेशन के लिए आरक्षित पदों की संख्या दो वर्षों की बाहरी सीमा के भीतर क्रमशः घटाई जानी चाहिए।”
अदालत ने यह माना कि सीएपीएफ अधिकारी अत्यंत कठिन परिस्थितियों में सेवा करते हैं और आईपीएस अधिकारियों की लैटरल एंट्री (lateral entry) के कारण उन्हें समय पर पदोन्नति नहीं मिल पाती, जिससे मनोबल प्रभावित होता है।
पीठ ने कहा,
“इस तरह का ठहराव (stagnation) बलों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसलिए ऐसी नीति पर पुनर्विचार करते समय इस पहलू पर भी विचार आवश्यक है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यद्यपि केंद्र सरकार का यह नीति निर्णय है कि प्रत्येक सीएपीएफ में आईपीएस अधिकारियों की उपस्थिति बनी रहे, लेकिन कैडर अधिकारियों की वाजिब शिकायतों और आकांक्षाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
“देश की सीमाओं की सुरक्षा और आंतरिक शांति बनाए रखने में इन अधिकारियों की निष्ठा और सेवा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता,” अदालत ने टिप्पणी की।
समीक्षा याचिका खारिज होने के साथ अब केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के 23 मई के आदेश का पालन करते हुए निर्धारित समयसीमा में कैडर समीक्षा पूरी करनी होगी और सीएपीएफ में आईपीएस अधिकारियों की डेप्युटेशन क्रमशः घटानी होगी।


 
                                     
 
        



