सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह उन वकीलों के मामलों पर दोबारा विचार करे जिनके सीनियर एडवोकेट नामांकन आवेदन नवंबर 2024 में हुई प्रक्रिया के दौरान या तो अस्वीकार कर दिए गए थे या लंबित रखे गए थे।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने यह आदेश अधिवक्ता रमन गांधी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। गांधी ने हाईकोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी थी जिसमें केवल 302 उम्मीदवारों में से 70 को ही सीनियर एडवोकेट नामित किया गया था। यह प्रक्रिया उस समय विवादों में आ गई थी जब परमानेंट कमेटी के एक सदस्य, वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंद्राजोग ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि अंतिम सूची उनकी सहमति के बिना तैयार की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि —

“लंबित और अस्वीकृत आवेदनों को परमानेंट कमेटी के समक्ष रखा जाएगा और 2024 के नियमों के अनुसार उनका निष्पक्ष और शीघ्र निपटारा किया जाएगा।”
साथ ही कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे सीनियर डेजिग्नेशन के लिए परमानेंट कमेटी का पुनर्गठन करें।
अभिलेखों के अनुसार, 67 आवेदन लंबित रखे गए थे और कई अन्य को सीधे अस्वीकार कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे सभी मामलों पर निर्धारित प्रक्रिया के तहत पुनर्विचार होना चाहिए।
ज्ञात हो कि सीनियर एडवोकेट नामांकन की प्रक्रिया 2017 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के तहत तय की गई है, जिसमें कहा गया था कि उम्मीदवारों की स्क्रीनिंग के लिए एक स्थायी समिति (Permanent Committee) बनाई जाए और अंतिम निर्णय पूर्ण पीठ (Full Court) द्वारा लिया जाए।
इससे पहले 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया था और वरिष्ठ अधिवक्ता नंद्राजोग से भी जवाब मांगा था, जो उन्होंने सीलबंद लिफाफे में दाखिल किया।
मंगलवार की सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी सवाल उठाया कि प्रक्रिया इतनी जल्दबाज़ी में क्यों पूरी की गई।
“सीनियर डेजिग्नेशन की इतनी हड़बड़ी क्या थी? अगर हम पूरी प्रक्रिया की जांच करें, तो यह संतोषजनक नहीं पाएंगे,” कोर्ट ने टिप्पणी की।
इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मृदुल और विकास सिंह पेश हुए।