एक असामान्य लेकिन कड़ा कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले एन. ईश्वरनाथन बनाम राज्य [SLP (Crl) डायरी नं. 55057/2024] में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) को आदेश दिया है कि वे 1 अप्रैल 2025 को यात्रा प्रमाण के साथ स्वयं कोर्ट में उपस्थित हों। यह आदेश इसलिए दिया गया क्योंकि संबंधित AoR वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई में शामिल नहीं हुए और याचिका की संक्षिप्तिका (synopsis) में कथित रूप से भ्रामक जानकारी दी गई।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विशेष अनुमति याचिका (SLP), मद्रास हाईकोर्ट के 29 सितंबर 2023 के निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी। यह निर्णय क्रिमिनल अपील नं. 653/2011 में आया था, जिसमें याचिकाकर्ता एन. ईश्वरनाथन की सजा को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।

सुप्रीम कोर्ट में दायर SLP के साथ निम्नलिखित अंतरिम आवेदन भी प्रस्तुत किए गए:
- याचिका के दायर करने और पुनः दायर करने में हुई देरी को माफ करने का निवेदन,
- प्रमाणित प्रति और कार्यालय अनुवाद से छूट,
- अतिरिक्त दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की अनुमति।
कानूनी प्रश्न और कोर्ट में हुई कार्यवाही
इस सुनवाई का केंद्रबिंदु केस की मेरिट नहीं, बल्कि प्रक्रिया से जुड़ी सत्यता और पारदर्शिता थी। न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिका की संक्षिप्तिका में “कुछ गलत विवरण” दर्ज होने की ओर संकेत किया।
सुबह की कार्यवाही के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आर. नेदुमरन ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश होकर बताया कि AoR श्री पी. सोम सुंदरम तमिलनाडु के एक सुदूर गाँव में हैं।
दोपहर में अधिवक्ता श्री पी.वी. योगेश्वरन ने कोर्ट को बताया कि मोबाइल नेटवर्क की खराब स्थिति के कारण वे श्री सुंदरम से संपर्क नहीं कर पाए। उन्होंने बताया कि वह भी उसी गाँव के निवासी हैं और नेटवर्क की समस्या की पुष्टि कर सकते हैं।
कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एस. नागमुथु भी मौजूद थे, जो पहले इस मामले से जुड़े एक अन्य प्रकरण में पेश हो चुके थे। उन्होंने पीठ को आश्वस्त किया कि श्री सुंदरम अगली सुनवाई में कोर्ट में उपस्थित होंगे।
कोर्ट का निर्देश और महत्वपूर्ण टिप्पणी
स्थिति को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया:
“एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड श्री पी. सोम सुंदरम, दिनांक 01.04.2025 को प्रातः 10:30 बजे इस न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होंगे और तमिलनाडु की यात्रा एवं वापसी के सभी टिकट अपने साथ लाएंगे।”
यह निर्देश याचिका की संक्षिप्तिका में गलत विवरण और प्रक्रियात्मक ज़िम्मेदारियों में कोताही के मद्देनज़र दिया गया, क्योंकि कोर्ट ने AoR की अनुपस्थिति और उनके उत्तरदायित्व को गंभीरता से लिया।