दिल्ली में हवा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ने के बीच सुप्रीम कोर्ट को सोमवार को बताया गया कि राष्ट्रीय राजधानी के कई एयर मॉनिटरिंग स्टेशन काम नहीं कर रहे हैं। अदालत ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर निगरानी तंत्र ही ठप है तो प्रदूषण नियंत्रण उपायों का सही मूल्यांकन कैसे होगा।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष एक अधिवक्ता ने कहा, “दीवाली के दिन 37 में से सिर्फ 9 मॉनिटरिंग स्टेशन काम कर रहे थे। ऐसी स्थिति में हमें यह भी नहीं पता कि ‘ग्रैप’ (GRAP) कब लागू करना है, यही सबसे गंभीर समस्या है।”
एक अन्य वकील ने अदालत को बताया कि मीडिया में “बार-बार रिपोर्टें आ रही हैं कि कई मॉनिटरिंग स्टेशन बंद हैं”, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अदालत ने इस पर संज्ञान लेते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से रिपोर्ट मांगी है कि राजधानी में प्रदूषण को रोकने और निगरानी प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ‘समीर’ ऐप के अनुसार सोमवार दोपहर 1:05 बजे दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 304 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। 28 मॉनिटरिंग स्टेशनों पर AQI 300 से ऊपर रहा, जबकि रविवार को तीन केंद्रों ने 400 से अधिक AQI दर्ज किया था — जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।
राजधानी पर धुंध की मोटी परत छाई रही और दृश्यता कई इलाकों में बेहद कम हो गई। वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (AQEWS) के अनुसार रविवार शाम और रात में हवा की रफ्तार आठ किलोमीटर प्रति घंटा से नीचे गिर गई, जिससे प्रदूषक कणों का फैलाव रुक गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति में सांस लेने में कठिनाई, अस्थमा, हृदय रोग और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों के लिए यह हवा बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि CAQM और CPCB से रिपोर्ट मिलने के बाद मामले की अगली सुनवाई की जाएगी, ताकि यह तय किया जा सके कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए ‘ग्रैप’ के सख्त चरणों को लागू करने की जरूरत है या नहीं।




