लंबे समय तक लंबित आपराधिक अपीलों के प्रभाव पर विचार करते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मध्य प्रदेश राज्य की आपराधिक अपील को खारिज कर दिया। यह मामला State of Madhya Pradesh v. Shyamlal & Others [Criminal Appeal No. 1254 of 2024] था, जिसमें कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा हत्या के दोष को “गैर-इरादतन मानव वध” (Section 304, Part II IPC) में बदलने के निर्णय को बरकरार रखा। सर्वोच्च न्यायालय ने मौत के कारण पर गंभीर संदेह, आरोपियों की उम्र और तीन दशक से भी अधिक समय की विलंबता को इस निर्णय का आधार बताया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 1 नवंबर 1989 को मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में हुई एक हिंसक घटना से जुड़ा है। आरोप था कि श्यामलाल और अन्य सह-आरोपी यह मानते हुए कि पीड़ित सिरोमन (PW-1) ने उनकी भैंस की पूंछ काट दी थी, उन्होंने लाठी और भालों से हमला किया। इस दौरान कई लोग घायल हुए, जिनमें लक्ष्मण नामक व्यक्ति की 15 दिन बाद मृत्यु हो गई।
प्रारंभ में, ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों को IPC की धाराओं 147, 452, 302, 325, और 323 पढ़ी गई धारा 149 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2017 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या की सजा को घटाकर धारा 304 (भाग-2) में बदल दिया और उम्रदराज आरोपियों को केवल पहले से बिताए गए 76 दिनों की सजा मानते हुए छोड़ दिया। प्रत्येक को ₹16,000 का जुर्माना और मृतक के परिवार को ₹1 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया।
कानूनी तर्क और सुप्रीम कोर्ट की विश्लेषण
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी। सरकारी वकील नितिन तलरेजा ने तर्क दिया कि हमले के दौरान मृतक सहित 35 से अधिक गंभीर चोटें दी गई थीं और डॉ. बाबूराम आर्य (PW-17) ने भी गंभीर खोपड़ी और चेहरे की चोटों की पुष्टि की थी। उन्होंने Ahmed Hussein Vali Mohammed Saiyed & Anr. v. State of Gujarat (2009) का हवाला देते हुए कहा कि बहुत ही नरम सजा अदालत की अंतरात्मा को झकझोर सकती है।
वहीं, आरोपियों की ओर से नियुक्त विधिक सहायता वकील ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से मौत का कारण चोटें नहीं थीं। मृत्यु का कारण ‘दम घुटना’ (asphyxia) बताया गया था, और कोई आंतरिक अंग को क्षति या विष का संकेत नहीं मिला। डॉ. आर्य ने गवाही में कहा:
“लक्ष्मण की मृत्यु दम घुटने से हुई थी। इसका निश्चित कारण बताना कठिन है।”
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की तीन जजों की पीठ ने मेडिकल और तथ्यों की विस्तार से समीक्षा की। उन्होंने कहा:
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कारण और PW-17 की गवाही यह सिद्ध नहीं करती कि मृतक को लगी चोटों के कारण उसकी मृत्यु हुई… यह भी संदेहास्पद है कि धारा 304 IPC भी लागू होती है या नहीं।”
हालांकि, क्योंकि आरोपी पक्ष ने धारा 304 के तहत दोषी ठहराए जाने को चुनौती नहीं दी थी, इसलिए कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया। कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को “उचित और न्यायसंगत” बताया, विशेषकर तब जब सभी जीवित आरोपी अब 70 से 80 वर्ष के हैं और घटना को 36 वर्ष बीत चुके हैं।
महत्वपूर्ण टिप्पणी: आपराधिक अपीलों में देरी पर चिंता
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अपीलों की सुनवाई में होने वाली अत्यधिक देरी पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा:
“यदि ऐसे मामलों में जहां आरोपी ज़मानत पर हैं और उन्हें आजीवन कारावास मिला है, उनकी अपीलें एक दशक या उससे अधिक समय बाद सुनी जाएं… तो सवाल उठता है कि क्या उन्हें फिर से जेल भेजा जाना चाहिए?”
कोर्ट ने ज़ोर दिया कि “संतुलन बनाए रखना आवश्यक है” और सुझाव दिया कि बुजुर्ग दोषियों या लंबे समय से लंबित मामलों की अपीलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, भले ही आरोपी ज़मानत पर हों।
