सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा भूमि से अतिक्रमण हटाने पर उच्च स्तरीय समिति से दो हफ्ते में रिपोर्ट मांगी; केंद्र ने राज्यों व अन्य इकाइयों द्वारा कब्जे की जानकारी दी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय स्वतंत्र समिति को रक्षा भूमि पर हुए अतिक्रमणों को हटाने के लिए उठाए गए कदमों पर दो हफ्ते के भीतर अंतरिम रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। केंद्र ने अदालत को बताया कि कई राज्य सरकारों, उनकी एजेंसियों और अन्य संस्थाओं ने रक्षा भूमि पर कब्जा कर रखा है और इन्हें हटाने के प्रयास जारी हैं।

न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह आदेश 2014 में एनजीओ कॉमन कॉज द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। इस याचिका में देशभर में रक्षा भूमि पर कथित अतिक्रमण और दुरुपयोग की जांच की मांग की गई थी।

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ को सूचित किया कि समिति विभिन्न स्थानों पर जाकर अतिक्रमण की पहचान कर रही है, लेकिन उसे कुछ जगहों पर स्थानीय स्तर पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में अदालत के दिशा-निर्देश और सहयोग की आवश्यकता है।

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कॉमन कॉज की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि समिति को माइक्रो स्तर पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए एक स्वतंत्र नियामक निकाय बनाने की आवश्यकता दोहराई।

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पीठ ने कहा कि चाहे जो भी निकाय बने, उसे स्थानीय राजस्व अधिकारियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद लेनी ही होगी। अदालत ने कहा, “जब अंतरिम रिपोर्ट दाखिल हो जाएगी, तब हम देखेंगे कि क्या निर्देश दिए जा सकते हैं।” अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी।

केंद्र ने 30 जुलाई को दाखिल हलफनामे में बताया कि रक्षा संपदा संगठन (DEO) के अधीन कुल 75,629 एकड़ भूमि में से 2,024 एकड़ भूमि पर व्यक्तियों ने अतिक्रमण कर रखा है। इसके अलावा 1,575 एकड़ भूमि पर पूर्व कृषि पट्टाधारक अवैध रूप से कब्जा किए हुए हैं।

लगभग 819 एकड़ भूमि राज्य और केंद्र सरकार के विभागों या उपक्रमों के पास सार्वजनिक उपयोग के लिए—जैसे सड़क, स्कूल, पार्क, बस स्टैंड और प्रशासनिक उपयोग—में है।

हलफनामे में कहा गया है कि कुल 75,629 एकड़ में से 52,899 एकड़ भूमि छावनी क्षेत्रों के भीतर और 22,730 एकड़ भूमि छावनी के बाहर स्थित है। पूर्व पट्टाधारकों सहित अवैध कब्जाधारकों के खिलाफ बेदखली की कार्रवाई शुरू की जा चुकी है।

केंद्र ने अदालत को बताया कि संबंधित सरकारी विभागों के साथ बातचीत चल रही है ताकि भूमि विनिमय की संभावनाएं तलाश की जा सकें, जिससे रक्षा मंत्रालय को समान मूल्य की अन्य भूमि दी जा सके।

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रक्षा संपदा महानिदेशालय (DGDE) ने अतिक्रमण की निगरानी के लिए रियल-टाइम रिकॉर्ड मैनेजमेंट सिस्टम के तहत एक डिजिटल मॉड्यूल शुरू किया है। इससे छावनी बोर्डों के सीईओ और रक्षा संपदा अधिकारी पारदर्शी तरीके से अतिक्रमण की रिपोर्ट कर सकते हैं।

निवारक उपायों के तहत सीमा दीवारें और बाड़ लगाने का काम भी किया जा रहा है। पिछले दस वर्षों में लगभग 1,715 एकड़ भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है, जबकि वर्तमान वर्ष में ही 220 एकड़ भूमि को तकनीकी सर्वेक्षण और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से मुक्त कराया गया है।

हालांकि, हलफनामे में कहा गया कि पुलिस और मजिस्ट्रेट की अनुपलब्धता, न्यायिक स्थगन और प्रक्रियागत बाधाओं जैसी वजहों से बेदखली की कार्रवाई में देरी होती है।

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7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ छावनी क्षेत्रों में निजी संस्थाओं को रक्षा भूमि के आवंटन में अनियमितताओं पर चिंता जताई थी। अदालत ने बिना नाम लिए यह भी कहा था कि कुछ स्थानों पर आलीशान बंगले और विशाल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाए गए हैं, जो कथित रूप से रक्षा संपदा अधिकारियों की मिलीभगत से संभव हुआ।

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी, जिसमें देशभर में रक्षा भूमि पर अतिक्रमण और दुरुपयोग की सीबीआई जांच की मांग की गई थी। अदालत इस मामले की लगातार निगरानी कर रही है।

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