मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक नाटकीय सत्र के दौरान जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ और कई प्रमुख वकीलों के बीच तीखी बहस देखने को मिली। विवाद का केंद्र एक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) पी. सोमा सुंदरम के खिलाफ दिया गया विवादित आदेश था, जिन पर जस्टिस त्रिवेदी ने “तुच्छ और परेशान करने वाली याचिका” दायर करने का आरोप लगाया।
यह टकराव उस वक्त शुरू हुआ जब जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा के साथ बैठी पीठ ने एक आपराधिक मामले [एन. ईश्वरनाथन बनाम राज्य] में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने के लिए AoR को फटकार लगाई। कोर्ट ने पहले दिए गए उस आदेश की अवहेलना पर नाराज़गी जताई, जिसमें आरोपियों को आत्मसमर्पण करने को कहा गया था। इसके अलावा, याचिका में कई अहम जानकारियों को छुपाने का आरोप भी लगाया गया।
इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने AoR सोमा सुंदरम के पक्ष में मोर्चा खोल दिया। उन्होंने पीठ के उस आदेश की निष्पक्षता पर सवाल उठाए, जिसमें AoR के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की आशंका जताई गई थी।

तनाव बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में संशोधन किया। नए निर्देश के अनुसार, अब सुंदरम और याचिकाकर्ता दोनों को यह स्पष्ट करते हुए हलफनामा दाखिल करना होगा कि दूसरी विशेष अनुमति याचिका (SLP) क्यों दायर की गई, जिसमें कथित रूप से भ्रामक जानकारी दी गई थी। कोर्ट ने कहा है कि ये हलफनामे एक सप्ताह के भीतर दाखिल किए जाएं और दोनों — वकील और याचिकाकर्ता — को 9 अप्रैल को व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा।
सुंदरम, जो पिछली सुनवाई में यात्रा के कारण अनुपस्थित थे, उन्होंने अपने यात्रा दस्तावेज कोर्ट में पेश किए, लेकिन दायर दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षरों की प्रमाणिकता को लेकर उन्हें और सवालों का सामना करना पड़ा।
यह मामला अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज आरोपों से जुड़ा है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की अन्य धाराएं भी शामिल हैं। सत्र न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि के बाद, जिसे मद्रास हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से राहत मांगी थी, जिसने पहले उन्हें आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।