सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए यह स्पष्ट किया है कि भर्ती अधिसूचनाओं में ड्राइविंग लाइसेंस को “निरंतर” (Continuously) रखने की आवश्यकता का अर्थ शाब्दिक रूप से “बिना किसी रुकावट के” होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी उम्मीदवार का लाइसेंस समाप्त हो गया था और कुछ अंतराल के बाद उसका नवीनीकरण (renewal) कराया गया, तो यह नहीं माना जा सकता कि उन्होंने संबंधित अवधि के दौरान “निरंतर” लाइसेंस धारण किया था। कोर्ट ने इसका आधार यह बताया कि मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने समाप्त हो चुके लाइसेंसों के लिए ‘ग्रेस पीरियड’ को हटा दिया है।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने तेलंगाना राज्य स्तरीय पुलिस भर्ती बोर्ड द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी मुद्दा पात्रता शर्त की व्याख्या का था, जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि उम्मीदवारों के पास भर्ती अधिसूचना की तारीख से पहले “पूरे दो साल की अवधि के लिए निरंतर” ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि लाइसेंस की समाप्ति और उसके बाद के नवीनीकरण के बीच का अंतराल ‘निरंतरता’ (continuity) में बाधा उत्पन्न करता है। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने हाईकोर्ट के उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिसमें उन उम्मीदवारों पर विचार करने का निर्देश दिया गया था जिनके लाइसेंस समाप्त हो गए थे लेकिन एक वर्ष के भीतर नवीनीकृत करा लिए गए थे।
मामले की पृष्ठभूमि
तेलंगाना राज्य स्तरीय पुलिस भर्ती बोर्ड ने दो अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी की थीं:
- 25.04.2022 की अधिसूचना: पुलिस परिवहन संगठन में स्टाइपेंडियरी कैडेट ट्रेनी (SCT) पुलिस कांस्टेबल (ड्राइवर) के लिए। इसमें पात्रता मानदंड यह था कि उम्मीदवार के पास अधिसूचना की तारीख को “हल्के मोटर वाहन (बैज नंबर के साथ परिवहन) या HMV लाइसेंस, या दोनों मिलाकर, पूरे दो साल और उससे अधिक की अवधि के लिए निरंतर” होना चाहिए।
- 20.05.2022 की अधिसूचना: तेलंगाना राज्य आपदा प्रतिक्रिया और अग्निशमन सेवा विभाग में ड्राइवर ऑपरेटर के लिए, जिसके लिए अधिसूचना की तारीख को “दो साल और उससे अधिक की अवधि के लिए निरंतर” वैध HMV लाइसेंस की आवश्यकता थी।
लिखित परीक्षा से कई उम्मीदवारों (निजी प्रतिवादियों) को इसलिए अयोग्य घोषित कर दिया गया क्योंकि उनके ड्राइविंग लाइसेंस अधिसूचनाओं से पहले के दो वर्षों के लिए ‘निरंतर’ वैध नहीं थे। उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहाँ एक एकल न्यायाधीश ने उनकी रिट याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। एकल न्यायाधीश का मानना था कि नवीनीकरण के बाद, लाइसेंस की वैधता समाप्ति की तारीख से ही मानी जाती है, जिससे निरंतरता बनी रहती है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने बोर्ड की अपीलों को खारिज करते हुए एकल न्यायाधीश के आदेश की पुष्टि की थी, जिसके बाद बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता (भर्ती बोर्ड) ने तर्क दिया कि मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019, जो 01.09.2019 को लागू हुआ, ने वैधानिक योजना को काफी हद तक बदल दिया है। वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि संशोधन ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 14 के उस परंतुक (proviso) को हटा दिया है, जो पहले समाप्ति के बाद भी लाइसेंस के 30 दिनों तक प्रभावी रहने का ग्रेस पीरियड प्रदान करता था।
अपीलकर्ता ने जोर देकर कहा कि विधायिका ने “भाषा को पूरी तरह से इस इरादे से बदल दिया है कि ड्राइवरों को समाप्त हो चुके लाइसेंस के साथ ड्राइव करने के लिए कोई ग्रेस पीरियड न दिया जाए।” इसलिए, संशोधित धारा 15 के तहत नवीनीकरण के लिए एक वर्ष की अवधि को ड्राइविंग की स्वतंत्रता या लाइसेंस की निरंतरता के रूप में मानना कानून की “विकृत व्याख्या” होगी।
प्रतिवादियों (उम्मीदवारों) ने तर्क दिया कि संशोधन अधिनियम, 2019 के उद्देश्यों और कारणों के कथन (Statement of Objects and Reasons) में एक उदार दृष्टिकोण झलकती है, जिसने नवीनीकरण की समय सीमा को एक महीने से बढ़ाकर एक वर्ष कर दिया है। उन्होंने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण का समर्थन किया कि चूंकि उन्होंने एक वर्ष के भीतर नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था, इसलिए वैधता को निरंतर माना जाना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि अधिसूचना के खंड 19(iv) में ड्राइविंग टेस्ट की आवश्यकता है, जिसका अर्थ है कि यदि कोई उम्मीदवार टेस्ट पास करता है, तो उसकी क्षमता साबित हो जाती है, भले ही लाइसेंस में कोई अंतराल हो।
कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 14 और 15 का विश्लेषण किया और संशोधन पूर्व और संशोधन के बाद के प्रावधानों की तुलना की।
संशोधन अधिनियम, 2019 का प्रभाव कोर्ट ने पाया कि धारा 14 का परंतुक, जिसमें पहले कहा गया था कि ड्राइविंग लाइसेंस समाप्ति से “तीस दिनों की अवधि के लिए प्रभावी रहेगा”, को संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा हटा दिया गया है।
पीठ के लिए निर्णय लिखते हुए जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा:
“इस प्रकार, क़ानून के स्पष्ट शब्दों के अनुसार, जैसा कि व्याख्या का पहला नियम है, इसका अर्थ यह होगा कि 1988 अधिनियम की धारा 14, जैसा कि आज है, लाइसेंस को उसकी समाप्ति के बाद एक दिन के लिए भी जारी रखने का प्रावधान नहीं करती है; हालाँकि, संशोधन अधिनियम, 2019 से पहले, तत्कालीन मौजूदा परंतुक समाप्ति की तारीख से 30 दिनों की अवधि के लिए तिथि को स्वचालित रूप से बढ़ाने योग्य बनाता था।”
कोर्ट ने इस सिद्धांत को खारिज कर दिया कि नवीनीकरण पूर्वव्यापी रूप से (retrospectively) कार्य करता है और अधिसूचना के उद्देश्य के लिए बीच की अवधि (interregnum) को मान्य करता है। कोर्ट ने नोट किया:
“अधिनियम जैसा कि अब है, स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि लाइसेंस की समाप्ति की तारीख से, इसके धारक को कानून के तहत वाहन चलाने से रोक दिया जाता है। यह सिद्धांत कि एक बार लाइसेंस का नवीनीकरण हो जाने के बाद, भले ही अंतराल के बाद हो, नवीनीकरण पिछली तारीख से संचालित होगा जिसका अर्थ यह है कि लाइसेंस बीच की अवधि के दौरान भी निरंतर और वैध था, का समर्थन नहीं किया जा सकता है।”
‘निरंतर’ (Continuously) की व्याख्या ब्लैक्स लॉ डिक्शनरी का हवाला देते हुए, कोर्ट ने “निरंतर” को “बिना किसी बाधा के; अखंड क्रम में; बिना किसी विराम या समाप्ति के; बिना किसी हस्तक्षेप के समय; निरंतरता या जारी रखने के साथ” के रूप में परिभाषित किया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“इस प्रकार, हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि पिछले दो वर्षों के लिए ‘निरंतर’ शब्द की एक सीधी व्याख्या शाब्दिक अर्थ के अनुसार की जानी चाहिए, जो अधिसूचनाओं की तारीख(ों) से पहले कम से कम दो साल तक लगातार ड्राइविंग के लिए संबंधित व्यक्ति की वास्तविक कानूनी और निर्बाध क्षमता को दर्शाती है।”
‘ड्राइविंग टेस्ट’ के तर्क को अस्वीकार किया कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि ड्राइविंग टेस्ट पास करने से अयोग्यता ठीक हो जाती है। पीठ ने तर्क दिया कि ड्राइविंग टेस्ट व्यावहारिक कौशल को सत्यापित करने के लिए एक “अतिरिक्त सावधानी” है और यह आधारभूत पात्रता आवश्यकता को माफ नहीं कर सकता। इसके अलावा, अयोग्य उम्मीदवारों को भाग लेने की अनुमति देना उन लोगों के संबंध में समानता के सिद्धांत (doctrine of equality) का उल्लंघन होगा जिन्होंने खुद को अयोग्य मानकर आवेदन नहीं किया था।
कोर्ट ने राकेश कुमार शर्मा बनाम राज्य (NCT ऑफ दिल्ली) (2013) और सुधीर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024) का हवाला देते हुए नोट किया:
“अपीलकर्ता को कोई भी लाभ देना समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा… ऐसे बड़ी संख्या में उम्मीदवारों ने खुद को वैधानिक नियमों और विज्ञापन की शर्तों का पालन करते हुए अयोग्य मानकर आवेदन नहीं किया होगा।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों को स्वीकार कर लिया और डिवीजन बेंच के 03.10.2023 के निर्णय और एकल न्यायाधीश के आदेशों को रद्द कर दिया। उम्मीदवारों द्वारा दायर की गई मूल रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।
कोर्ट ने अपीलकर्ता (बोर्ड) को निर्देश दिया कि वह भर्ती प्रक्रिया को “तेजी से और किसी भी कीमत पर, आज से तीन महीने के भीतर” पूरा करे।
केस विवरण:
- केस टाइटल: तेलंगाना स्टेट लेवल पुलिस रिक्रूटमेंट बोर्ड बनाम पेंजर्ला विजय कुमार व अन्य आदि
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या ____ 2025 [@ विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 8684-8688, 2024]
- साइटेशन: 2025 INSC 1452
- कोरम: जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी

