सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: अदालतें वसूली एजेंट नहीं, नागरिक विवादों को आपराधिक मामला बनाने की प्रवृत्ति पर चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नागरिक विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति पर कड़ी नाराज़गी जताई और स्पष्ट किया कि अदालतें “वसूली एजेंट” का काम नहीं कर सकतीं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने उत्तर प्रदेश से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि केवल बकाया धनराशि की वसूली के लिए गिरफ्तारी की धमकी का सहारा लेना कानून का दुरुपयोग है। अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि पैसों की वसूली के विवाद में अपहरण जैसी गंभीर धाराएँ भी आरोपित की गई हैं।

पीठ ने कहा कि इस तरह का दुरुपयोग न्याय प्रणाली के लिए “गंभीर खतरा” है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की—

“अदालतें पक्षकारों के लिए बकाया वसूली एजेंट नहीं हैं। न्यायिक व्यवस्था का इस प्रकार दुरुपयोग स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने पुलिस को सलाह दी कि गिरफ्तारी करने से पहले यह विवेकपूर्वक तय करें कि मामला नागरिक है या आपराधिक।

READ ALSO  'तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ है; पांच मिनट में मेरा काम हो जाएगा'... जज ने तलाक के मामले में शानदार फैसला सुनाया

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने स्वीकार किया कि ऐसे मामलों में पुलिस दोहरे दबाव में रहती है। यदि पुलिस संज्ञेय अपराध का आरोप होने पर भी एफआईआर दर्ज नहीं करती तो अदालतें ललिता कुमारी (2013) फैसले का हवाला देकर फटकार लगाती हैं। वहीं, यदि एफआईआर दर्ज करती है तो पक्षपात या शक्ति के दुरुपयोग का आरोप लगता है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इस दुविधा को समझते हुए कहा कि पुलिस को विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय लेना होगा ताकि आपराधिक कानून को नागरिक विवादों में हथियार न बनाया जाए।

READ ALSO  जजशिप स्वीकार करने या न करने के सवाल पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ से पूर्व सीजेआई अहमदी ने ये कहा था

इस समस्या के समाधान के लिए पीठ ने सुझाव दिया कि राज्य सरकारें प्रत्येक ज़िले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त करें, जो अधिमानतः सेवानिवृत्त ज़िला न्यायाधीश हों। पुलिस उनसे परामर्श कर यह तय कर सकेगी कि मामला नागरिक है या आपराधिक, और फिर क़ानून के अनुसार आगे बढ़े।

अदालत ने एएसजी नटराज को निर्देश दिया कि वह राज्य सरकार से इस विषय पर निर्देश प्राप्त कर दो सप्ताह में जानकारी दें।

READ ALSO  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पुलिस स्टेशनों के लिए प्रमुख दिशानिर्देश जारी किए, डीजीपी को सीसीटीवी लगाने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने हाल के समय में कई बार इस प्रवृत्ति पर चिंता जताई है कि पक्षकार अपने विवादों का त्वरित निपटारा पाने के लिए जानबूझकर आपराधिक मामले दर्ज कराते हैं। अदालत ने दोहराया कि यह प्रवृत्ति आपराधिक न्याय व्यवस्था के उद्देश्य को कमजोर करती है और न्याय प्रणाली पर विश्वास को आघात पहुँचाती है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles