नवजात शिशुओं की लाखों रुपये में बिक्री से जुड़ी एक चौंकाने वाली मीडिया रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि वह किसी भी हाल में छह लापता बच्चों को ढूंढ़ निकाले और उन्हें सुरक्षित बचाए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में सक्रिय बाल तस्करी गिरोहों पर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि ऐसे अपराधी “समाज के लिए गंभीर खतरा” हैं। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “कहीं से भी ढूंढ़ के लाओ इन 6 बच्चों को”, और दिल्ली पुलिस से तुरंत ठोस कार्रवाई की मांग की।
जस्टिस पारदीवाला ने कहा, “जो लोग बच्चों का अपहरण करके उन्हें बेचते हैं, वे यह अपराध बार-बार करते हैं। ये लोग हत्यारों से भी ज़्यादा खतरनाक हैं।” उन्होंने कहा कि हत्या के पीछे एक बार का उद्देश्य हो सकता है, लेकिन तस्करी करने वाले संगठित रूप से बार-बार अपराध करते हैं और यह समाज की सुरक्षा के लिए गहरी चुनौती है।
पीठ ने दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि वह इस बाल तस्करी रैकेट के मुख्य सरगना की पहचान कर उसकी गिरफ्तारी सुनिश्चित करे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नवजात शिशुओं को 5 से 10 लाख रुपये में बेचा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस रैकेट से जुड़े कई लोग आदतन अपराधी हैं और उन्हें जवाबदेह ठहराना होगा। “जो लोग नवजात बच्चों को बेचते और खरीदते हैं, वे सभी आरोपी हैं, और उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए,” अदालत ने स्पष्ट किया।
दिल्ली पुलिस की इस दलील पर कि कुछ मामलों में बच्चे उनके ही माता-पिता द्वारा बेचे गए थे, अदालत ने कहा कि यदि ऐसे मामलों में माता-पिता अपने बच्चों को वापस लेने से इनकार करते हैं, तो उन बच्चों की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।
यह कड़ा आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट को हाल में दी गई फटकार के बाद आया है, जिसमें हाईकोर्ट ने बाल तस्करी के मामलों में 13 आरोपियों को “लापरवाही से” जमानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन जमानत आदेशों को रद्द कर दिया और कहा कि ऐसी ढील तस्करी नेटवर्क को बढ़ावा दे सकती है।
जस्टिस पारदीवाला ने यह भी कहा कि “अगर किसी अस्पताल से नवजात गायब होता है, तो सबसे पहले उस अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर देना चाहिए।” अदालत ने दोहराया कि सभी राज्य सरकारें बाल तस्करी से निपटने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश लागू करें और देशभर के हाईकोर्ट्स को ऐसे मामलों की लंबित सुनवाइयों की निगरानी का निर्देश दिया। पीठ ने चेतावनी दी कि “इन निर्देशों के पालन में किसी भी प्रकार की ढिलाई को अदालत की अवमानना माना जाएगा।”
परिवारों पर पड़ने वाले मानसिक और भावनात्मक प्रभाव को रेखांकित करते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा, “जब बच्चा मरता है, तो वह ईश्वर के पास होता है, लेकिन जब तस्करों के हाथ लगता है, तो वह ऐसे गिरोहों की दया पर होता है। एक माता-पिता की पीड़ा उस समय और अधिक होती है जब बच्चा खो जाता है, न कि मरता है।”
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2022 में बाल तस्करी के 2,250 मामले दर्ज किए गए, जिनमें सबसे अधिक मामले तेलंगाना, महाराष्ट्र और बिहार से सामने आए। सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई इस गंभीर सामाजिक समस्या पर तत्काल और व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है।