सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केन्द्र सरकार को उन ऑफिसर कैडेट्स के पुनर्वास के लिए ठोस सिफारिशें अंतिम रूप देने हेतु छह सप्ताह का समय दिया, जिन्हें प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांगता होने के कारण सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों से मेडिकल डिस्चार्ज किया गया था।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी द्वारा दी गई जानकारी पर गौर किया कि थलसेना, नौसेना और वायुसेना—तीनों सेवाओं ने इस विषय पर सकारात्मक सिफारिशें भेज दी हैं। हालांकि, इन पर पहले रक्षा मंत्रालय और उसके बाद वित्त मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक है। इसी प्रक्रिया के लिए समय मांगे जाने पर अदालत ने मामले की सुनवाई 20 जनवरी 2026 तक के लिए स्थगित कर दी।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए शुरू किया था, जिसमें उन कैडेट्स की समस्याओं को उठाया गया है जिन्हें नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) और इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षण के दौरान चोट या बीमारी के कारण सेवा से बाहर होना पड़ा।
केन्द्र की ओर से अदालत को बताया गया कि तीनों सेनाओं की सिफारिशें अनुकूल हैं, लेकिन नीतिगत और वित्तीय स्वीकृतियों की प्रक्रिया अभी पूरी होनी बाकी है। अदालत ने माना कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय आवश्यक है।
इस मामले में अमicus curiae नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता रेखा पल्ली ने पहले ही अदालत को विस्तृत सुझाव दिए हैं। इनमें मेडिकल सहायता, आर्थिक सहयोग, बीमा कवर, शिक्षा से जुड़े विकल्प और पुनर्वास की संभावनाओं को शामिल किया गया है, ताकि मेडिकल डिस्चार्ज हुए कैडेट्स को सम्मानजनक जीवन मिल सके।
अंतरिम राहत के तौर पर केन्द्र सरकार पहले ही यह आश्वासन दे चुकी है कि प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए कैडेट्स को अब ‘एक्स-सर्विसमेन कॉन्ट्रिब्यूटरी हेल्थ स्कीम’ (ECHS) के तहत चिकित्सा सुविधाएं दी जाएंगी। अदालत को बताया गया कि 29 अगस्त से ऐसे सभी कैडेट्स को ECHS में शामिल कर लिया गया है और उनसे एकमुश्त सदस्यता शुल्क भी नहीं लिया जा रहा है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा आर्थिक सहायता और बीमा व्यवस्था को लेकर चिंता जताई है। अदालत ने कहा है कि वर्ष 2017 से लागू ex-gratia राशि मौजूदा महंगाई और बढ़ती जरूरतों के लिहाज से अपर्याप्त प्रतीत होती है और इसमें बढ़ोतरी पर विचार होना चाहिए। इसी तरह, मौजूदा बीमा कवर को भी और मजबूत करने की आवश्यकता बताई गई है।
यह मामला 12 अगस्त को सामने आया था, जब एक मीडिया रिपोर्ट में इन कैडेट्स की दुर्दशा को उजागर किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1985 से अब तक लगभग 500 ऑफिसर कैडेट्स प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांगता के कारण सैन्य संस्थानों से बाहर किए गए हैं। इनमें से कई आज भारी मेडिकल खर्चों का सामना कर रहे हैं, जबकि उन्हें अधिकतम 40,000 रुपये प्रति माह तक की ex-gratia सहायता ही मिल पाती है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि अकेले NDA में ही 2021 से जुलाई 2025 के बीच पांच वर्षों में करीब 20 कैडेट्स मेडिकल डिस्चार्ज हुए। चूंकि ये कैडेट्स अधिकारी के रूप में कमीशन होने से पहले ही बाहर हो गए, इसलिए इन्हें ‘एक्स-सर्विसमेन’ का दर्जा नहीं मिलता, जबकि इसी दर्जे के कारण सैनिकों को आजीवन सैन्य चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय समयसीमा के साथ यह उम्मीद जताई जा रही है कि दशकों से उपेक्षित रहे इन पूर्व ऑफिसर कैडेट्स के लिए केन्द्र सरकार एक प्रभावी और मानवीय पुनर्वास नीति लेकर आएगी।

