सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश दिया कि बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान चुनाव आयोग (ECI) को आधार कार्ड को भी मान्य दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार करना होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या पुनः जोड़ने के लिए आवेदक चुनाव आयोग द्वारा पहले से अधिसूचित 11 दस्तावेज़ों में से किसी एक या आधार कार्ड के साथ आवेदन कर सकते हैं।
यह आदेश उन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आया, जिनमें आयोग के 24 जून के निर्देश को चुनौती दी गई थी। इस निर्देश के तहत बिहार में राज्यव्यापी SIR कराया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस प्रक्रिया में पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं, जिससे मतदाताओं के नाम मनमाने तरीके से हटाए जा सकते हैं और हजारों लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं, जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर असर पड़ेगा।
अदालत ने याद दिलाया कि 10 अगस्त को उसने आयोग को सुझाव दिया था कि आधार कार्ड, राशन कार्ड और EPIC कार्ड को भी इस प्रक्रिया में स्वीकार किया जाए। हालांकि, आयोग ने अपने हलफनामे में आधार और राशन कार्ड को सूची से बाहर रखा था।

आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 324 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत उसे इस तरह का पुनरीक्षण करने का अधिकार है। आयोग के अनुसार, बिहार में SIR आवश्यक है क्योंकि यहां शहरी पलायन, जनसांख्यिकीय बदलाव और लगभग दो दशकों से गहन पुनरीक्षण न होने की स्थिति है।
आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया से विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को सटीक बनाया जा सकेगा और केवल पात्र नागरिक ही सूची में शामिल होंगे।
राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
पीठ ने मतदाता नाम विलोपन के मामलों में राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर आश्चर्य जताते हुए बिहार के 12 दलों को आदेश दिया कि वे अपने बूथ-स्तरीय कार्यकर्ताओं को निर्देश दें कि वे मतदाताओं की मदद करें और आवश्यक प्रपत्र किसी भी मान्य दस्तावेज़ या आधार कार्ड के साथ भरवाएं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “बिहार के सभी 12 राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश दें कि वे लोगों को फॉर्म 6 किसी भी 11 दस्तावेज़ों या आधार कार्ड के साथ भरने और जमा करने में मदद करें।”
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि बिहार में 1.68 लाख से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंट (BLA) तैनात होने के बावजूद अब तक केवल दो आपत्तियां ही दर्ज हुई हैं। पीठ ने टिप्पणी की, “हमें केवल राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर आश्चर्य है। BLAs नियुक्त करने के बाद वे क्या कर रहे हैं? लोगों और स्थानीय राजनीतिक व्यक्तियों के बीच यह दूरी क्यों है? राजनीतिक दलों को मतदाताओं की मदद करनी चाहिए।”
अदालत ने BLAs को यह भी निर्देश दिया कि वे यह जांचें कि प्रारूप सूची में शामिल न किए गए 65 लाख नाम मृत व्यक्तियों के हैं, स्थानांतरित हो चुके हैं या फिर ऐसे मतदाता हैं जिन्हें पुनः शामिल करने की सुविधा दी जानी चाहिए।