सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चल रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के दौरान पहचान के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड, राशन कार्ड और इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC) को स्वीकार करने पर चुनाव आयोग (ECI) से विचार करने को कहा है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने याचिकाओं की सुनवाई के दौरान SIR प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन स्पष्ट किया कि अगर ECI इन दस्तावेजों को स्वीकार नहीं करता है, तो उसे उसका उचित कारण देना होगा।
“दस्तावेजों की समीक्षा के बाद, ECI ने बताया है कि पहचान सत्यापन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची है जो सीमित नहीं है। इसलिए न्यायहित में होगा कि आधार, EPIC और राशन कार्ड को भी शामिल किया जाए। हालांकि, अंतिम निर्णय ECI का होगा, लेकिन यदि वह इन्हें शामिल नहीं करता, तो याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए कारण देना होगा,” कोर्ट ने आदेश में कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 21 जुलाई तक जवाब दाखिल करने को कहा है और मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
पृष्ठभूमि और याचिकाएँ
यह मामला विपक्षी नेताओं और गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा दायर याचिकाओं से जुड़ा है, जिनमें ECI के 24 जून के आदेश को चुनौती दी गई है। इस आदेश के तहत 2003 की मतदाता सूची में दर्ज नहीं हुए मतदाताओं को नागरिकता के प्रमाण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है। दिसंबर 2004 के बाद जन्मे व्यक्तियों को अपने माता-पिता के नागरिकता प्रमाणपत्र भी जमा करने होंगे, और अगर कोई माता-पिता विदेशी नागरिक हों, तो उनके पासपोर्ट और वीज़ा की प्रतियां भी आवश्यक होंगी।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) सहित याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये शर्तें संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करती हैं और रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट, 1950 के खिलाफ हैं। उनका दावा है कि इससे बिहार में करोड़ों मतदाताओं का नाम सूची से हटने का खतरा है, खासकर गरीब और ग्रामीण इलाकों में जहां दस्तावेज़ीकरण की सुविधा सीमित है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
कोर्ट ने तीन प्रमुख प्रश्न चिह्नित किए:
- ECI को यह प्रक्रिया चलाने का अधिकार।
- अधिकारों के प्रयोग की प्रक्रिया।
- समयसीमा, जो चुनावों के निकट होने के कारण अत्यंत कम है।
जस्टिस बागची ने टिप्पणी की कि “आधार को पहले ही वोटर सूची में नाम जोड़ने के लिए ठोस प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है, तो इसे अब क्यों नहीं लिया जा रहा?” जस्टिस धूलिया ने भी व्यावहारिक कठिनाइयों पर चिंता जताई।
सुनवाई में पक्षों की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकरनारायणन ने याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा कि ECI द्वारा मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का बोझ डालना मनमाना और भेदभावपूर्ण है।
“ECI के पास नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है। नागरिक को अपनी नागरिकता साबित करने की ज़रूरत नहीं है; यह बोझ राज्य का है,” सिब्बल ने कहा।
वहीं, ECI के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बचाव में कहा कि आयोग का दायित्व केवल पात्र मतदाताओं को ही सूची में बनाए रखना है, और 2003 की cutoff तार्किक है क्योंकि तब व्यापक समीक्षा की गई थी।
“ECI का सीधा संबंध मतदाताओं से है। अगर मतदाता नहीं होंगे, तो हमारा कोई अस्तित्व नहीं,” द्विवेदी ने दलील दी।
कोर्ट ने कहा कि वह चुनाव आयोग के कामकाज में अनावश्यक दखल देने से परहेज़ करता है, लेकिन साथ ही आधार, राशन कार्ड और EPIC को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार न करने के कारणों की व्याख्या जरूरी है।
“अगर आप मुझसे ये दस्तावेज़ माँगें, तो मैं खुद भी इतनी जल्दी सब नहीं दिखा पाऊँगा,” जस्टिस धूलिया ने व्यावहारिक कठिनाइयों की ओर इशारा किया।
मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जिसमें ECI से विस्तृत जवाब माँगा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन चुनाव आयोग को यह स्पष्ट करने को कहा है कि वह आधार, राशन कार्ड और EPIC कार्ड को पहचान प्रमाण के रूप में क्यों नहीं मान रहा — यह मुद्दा बिहार विधानसभा चुनावों से पहले वोटिंग अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण है।