सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि दोषियों को अपील के स्तर पर जमानत मिलने के लिए आधी सजा पूरी करना अनिवार्य नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी मामले के गुण सजा निलंबन और जमानत को उचित ठहराते हैं, तो आरोपी को आधी सजा पूरी किए बिना भी राहत दी जा सकती है।
यह निर्णय नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो बनाम लखविंदर सिंह (क्रिमिनल अपील नंबर 475/2025) के मामले में आया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने एक दोषी को जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। आरोपी को मादक द्रव्य और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS अधिनियम) के तहत 10 साल की कठोर सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने अपील लंबित रहने और दोषी द्वारा पहले ही 4.5 साल की सजा काट लेने के आधार पर उसकी सजा निलंबित कर जमानत दे दी थी।
कानूनी पहलू और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने इस फैसले को चुनौती देते हुए दलील दी कि दोषी को तब तक जमानत नहीं दी जानी चाहिए जब तक वह अपनी आधी सजा पूरी नहीं कर लेता। एजेंसी ने “सुप्रीम कोर्ट लीगल एड कमेटी बनाम भारत संघ (1994) 6 SCC 731” के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कुछ विशेष परिस्थितियों में विचाराधीन कैदियों को जमानत देने के निर्देश दिए गए थे।
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हालांकि, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ की पीठ ने स्पष्ट किया कि 1994 का फैसला केवल विचाराधीन कैदियों की लंबी हिरासत की समस्या का समाधान करने के लिए एक अस्थायी उपाय था, और इससे अपीलीय अदालतों के विवेकाधिकार पर कोई बाध्यता नहीं लगाई जा सकती।
अदालत ने कहा:
“यह कोई अटल नियम नहीं हो सकता कि अपील लंबित रहने के दौरान दोषी को जमानत नहीं दी जा सकती जब तक कि उसने आधी सजा पूरी न कर ली हो।”
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अगर अपील की सुनवाई दोषी की सजा का एक बड़ा हिस्सा या पूरी सजा पूरी होने तक लंबित रहने वाली है, तो जमानत देने से इनकार करना अनुच्छेद 21 के तहत अपील और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
NDPS अधिनियम की धारा 37 का प्रभाव
NCB ने यह भी दलील दी कि NDPS अधिनियम की धारा 37, जो नशीली दवाओं के मामलों में जमानत पर सख्त शर्तें लागू करती है, उच्च न्यायालय को दोषी को रिहा करने से रोकती थी। इस पर, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये प्रावधान कठोर हैं, लेकिन यदि दोषी ने पहले ही अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा काट लिया हो और अपील की सुनवाई शीघ्र संभव न हो, तो अपीलीय न्यायालय जमानत देने का अधिकार रखता है।
अदालत ने दादू बनाम महाराष्ट्र राज्य (2000) 8 SCC 437 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि केवल धारा 37 के आधार पर जमानत से इनकार करना दोषी के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“यदि केवल NDPS अधिनियम की धारा 37 के आधार पर जमानत से इनकार किया जाता है, तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के अधिकारों के उल्लंघन के समान होगा।”
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने NCB की अपील खारिज करते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि अपील अदालत को दोषी द्वारा आधी सजा पूरी किए बिना भी गुण-दोष के आधार पर जमानत देने का अधिकार है। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि यदि आरोपी जमानत का दुरुपयोग करता है, तो NCB को जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता होगी।