मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले का समर्थन किया, जिसमें केंद्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को मुकदमे में पक्षकार बनाए जाने की अनुमति दी गई थी।
यह विवाद उस ऐतिहासिक स्थल को लेकर है जिसे हिंदू पक्षकार भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान बताते हैं। 5 मार्च, 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो मुकदमों में संशोधन की अनुमति देते हुए याचिकाकर्ताओं को गृह मंत्रालय (MHA) और एएसआई को प्रतिवादी बनाने की इजाजत दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा संशोधन की अनुमति देने में “प्रथम दृष्टया कुछ भी गलत नहीं” है। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने टिप्पणी की, “एक बात स्पष्ट है कि हिंदू वादकारियों द्वारा मूल वाद में संशोधन की अनुमति दी जानी चाहिए।”
ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह, मथुरा की प्रबंधन समिति ने इस संशोधन को चुनौती दी थी और तर्क दिया था कि इससे “मूल वाद की प्रकृति मौलिक रूप से बदल गई” है। समिति ने दावा किया कि संशोधन से उनका बचाव कमजोर हो गया और वादी पक्ष को एक नया मामला स्थापित करने का अवसर मिल गया।
हालांकि, मस्जिद समिति की आपत्तियों के बावजूद, हाईकोर्ट का निर्णय बरकरार रहा और एएसआई तथा गृह मंत्रालय को अतिरिक्त पक्षकार बनाने की अनुमति दी गई, भले ही इस संबंध में नागरिक प्रक्रिया संहिता (CPC) के तहत कोई औपचारिक आवेदन दाखिल नहीं किया गया था या यह साबित नहीं किया गया था कि वे अनिवार्य पक्षकार हैं।
4 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद समिति की एक अन्य याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के सभी हिंदू पक्षकारों के मुकदमों के एकीकरण के आदेश को चुनौती दी गई थी। इससे पहले, पिछले वर्ष 23 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने मस्जिद समिति की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें 11 जनवरी के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया गया था।
यह विवाद गहरे ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़ा है, जिसमें हिंदू पक्ष का दावा है कि मुगल शासक औरंगज़ेब के शासनकाल में शाही ईदगाह मस्जिद भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थल पर बने मंदिर को ध्वस्त कर बनाई गई थी।