सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक युवक की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई जिसमें असम पुलिस द्वारा उसकी मां की कथित अवैध हिरासत और बांग्लादेश भेजे जाने की आशंका जताई गई है।
26 वर्षीय यूनुच अली द्वारा दायर याचिका में उनकी मां मोनवारा बेवा की तात्कालिक रिहाई की मांग की गई है। याचिका के अनुसार, बेवा को 24 मई को धुबरी थाने में बयान दर्ज कराने के बहाने बुलाया गया था, जिसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
यह मामला जस्टिस संजय करोल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के समक्ष आया, जिन्होंने याचिका को लंबित विशेष अनुमति याचिका (SLP) के साथ जोड़कर सुनवाई करने की सहमति दी।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश होते हुए कहा कि मोनवारा बेवा पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुकी हैं, जो अब भी लंबित है, और उन्हें पहले जमानत भी मिल चुकी थी। बावजूद इसके उन्हें “बाहर निकाला जा रहा है।”
इस पर पीठ ने कहा, “हम इसे मुख्य मामले के साथ सूचीबद्ध करेंगे। हम इस पर सुनवाई करेंगे।”
जब सिब्बल ने कहा कि बेवा को बांग्लादेश भेजा जा सकता है और उनके बेटे को उनकी कोई जानकारी नहीं है, तो अदालत ने पूछा, “बाहर निकाला जा रहा है मतलब?” इस पर सिब्बल ने जवाब दिया, “उन्हें बांग्लादेश भेजा जा सकता है। हमें नहीं पता कि वह कहां हैं। कम से कम यह तो पूछा जाए कि वह कहां हैं। बेटा नहीं जानता।”
यह विशेष अनुमति याचिका गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देती है जिसमें एक विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा बेवा को विदेशी घोषित किए जाने के निर्णय को बरकरार रखा गया था। यह मामला 2017 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
बेव़ा को सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर 2019 के आदेश के तहत जमानत मिली थी, जिसमें उन बंदियों को सशर्त रिहाई की अनुमति दी गई थी जिन्होंने असम के विदेशी डिटेंशन सेंटरों में तीन साल से अधिक समय बिताया था।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि असम में ऐसे कई मामलों में लोगों को रातोंरात हिरासत में लेकर बांग्लादेश भेज दिया जाता है, भले ही उनके मामले अदालतों में लंबित हों।
अदालत ने अली की याचिका को लंबित एसएलपी के साथ जोड़कर एक साथ सुनवाई करने का निर्णय लिया है।