विशेष कानूनों के तहत मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की आवश्यकता पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से विशेष कानूनों के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने की दिशा में तत्काल कदम उठाने को कहा है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ऐसे मामलों में शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अदालतों का होना आवश्यक है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।

यह टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने की, जो महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के कथित नक्सल समर्थक कैलाश रामचंदानी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। रामचंदानी वर्ष 2019 से न्यायिक हिरासत में हैं। उन्हें 1 मई, 2019 को गढ़चिरौली के कुर्खेड़ा-पुराड़ा रोड पर आईईडी विस्फोट में क्विक रिस्पांस टीम के 15 पुलिसकर्मियों की मौत के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

9 मई के आदेश में पीठ ने कहा, “अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार भास्कर ठाकरे ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर हलफनामे का हवाला दिया। हालांकि, हमारा मानना है कि विशेष कानूनों के तहत मामलों की सुनवाई के लिए केंद्र और राज्यों द्वारा पर्याप्त ढांचे से युक्त विशेष अदालतों की स्थापना आवश्यक है, ताकि कानून का उद्देश्य प्राप्त किया जा सके।”

जस्टिस सूर्यकांत ने न्यायिक आधारभूत संरचना की कमी पर नाराजगी जताते हुए कहा, “हम बार-बार कह रहे हैं कि न्यायाधीश और अदालतें कहां हैं? यदि पहले से ही न्यायाधीशों पर भारी बोझ है, तो गंभीर मामलों की त्वरित सुनवाई कैसे हो सकती है?”

कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को सुझाव दिया कि वे किसी भी विशेष कानून के लागू होने के बाद उसके प्रभाव का न्यायिक आकलन करें ताकि मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचा सुनिश्चित किया जा सके। जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी सवाल किया कि गढ़चिरौली जैसे संवेदनशील मामले की सुनवाई के लिए राज्य सरकार ने अब तक विशेष अदालत क्यों नहीं बनाई।

READ ALSO  न्यूज़क्लिक विवाद: दिल्ली कोर्ट ने प्रबीर पुरकायस्थ, अमित चक्रवर्ती को 2 नवंबर तक पुलिस हिरासत में भेजा

इस पर एएसजी ठाकरे ने कोर्ट को बताया कि विशेष अदालतों की स्थापना के लिए प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है और उस पर विचार चल रहा है। कोर्ट ने ठाकरे को आगे की जानकारी लेने के लिए समय देते हुए सुनवाई की अगली तारीख 23 मई तय की।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि विशेष कानूनों के तहत मामलों में देरी के कारण कई बार आरोपी व्यक्तियों को जमानत मिल जाती है। वर्तमान मामला भी इसका उदाहरण है, जहां रामचंदानी लगभग पांच वर्षों से जेल में हैं और अब तक आरोप तय नहीं हुए हैं।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 5 मार्च 2024 को रामचंदानी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि यद्यपि अन्य सह-आरोपियों को जमानत दी गई है, लेकिन अभियोजन पक्ष की सामग्री से प्रथम दृष्टया रामचंदानी की साजिश में संलिप्तता का संकेत मिलता है। आदेश में कहा गया कि रामचंदानी ने कथित तौर पर सह-आरोपियों को पुलिस वाहन की आवाजाही की सूचना दी थी, जिससे घातक हमले को अंजाम देना संभव हुआ।

READ ALSO  केवीएस किसी अन्य राज्य द्वारा जारी प्रमाण पत्र के आधार पर ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत प्रवेश से इनकार नहीं कर सकता: हाई कोर्ट

हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया, “रिकॉर्ड में मौजूद बयानों से स्पष्ट है कि आरोपी नक्सलियों के संपर्क में था, जंगल गया और घटना वाले दिन पुलिस वाहन की सूचना सह-आरोपियों को दी। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि आरोपी ने जानबूझकर आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने में सहायता की।”

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि गंभीर अपराधों में केवल देरी के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती, लेकिन ऐसी देरी रोकने के लिए प्रणालीगत सुधार आवश्यक हैं।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles