सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को समावेशी दृष्टिकोण अपनाने और “मानवीय चेहरा” दिखाने की नसीहत दी है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि स्टेट बार काउंसिल में दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए ‘को-ऑप्शन’ (co-option) यानी मनोनयन का रास्ता अपनाया जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया या कानून में संशोधन का इंतजार करने के बजाय, काउंसिल को वैकल्पिक तरीकों से दिव्यांग सदस्यों को जगह देनी चाहिए।
संस्था को मजबूत करेगी समावेशिता
सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें स्टेट बार काउंसिल के चुनावों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण की मांग की गई है। सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्य कांत ने बीसीआई के चेयरमैन और वरिष्ठ वकील मनन कुमार मिश्रा से कहा, “अगर हमारे पास एक भी ऐसा प्रतिनिधि है, तो इससे संस्था मजबूत होगी। यह संस्था के मानवीय चेहरे को बढ़ाएगा और समावेशिता के प्रति आपकी प्रतिबद्धता को भी मजबूत करेगा।”
बेंच ने सुझाव दिया कि बीसीआई तमिलनाडु से इसकी शुरुआत कर सकती है, जहां अभी बार काउंसिल के चुनावों की घोषणा नहीं हुई है। कोर्ट ने बीसीआई को निर्देश दिया कि वह इस संबंध में विचार-विमर्श करे और कोर्ट के समक्ष एक प्रस्ताव रखे।
कानूनी अड़चन और बीसीआई का विरोध
बीसीआई ने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई। चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने दलील दी कि एडवोकेट्स एक्ट में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है और ऐसा कोई भी बदलाव केवल संसद ही कर सकती है। उन्होंने आशंका जताई कि अगर बीसीआई ने ऐसा करना शुरू किया, तो “इसका कोई अंत नहीं होगा।”
मिश्रा ने यह भी कहा कि वकीलों के बीच दिव्यांग जनों की संख्या बहुत कम है, इसलिए सीमित संख्या वाली काउंसिल में उनके लिए सीट आरक्षित करना अव्यावहारिक होगा। बीसीआई के वाइस चेयरमैन और वरिष्ठ वकील एस. प्रभाकरन ने भी इसका विरोध करते हुए कहा, “तमिलनाडु में कई ट्रांसजेंडर वकील प्रैक्टिस कर रहे हैं, कल वे भी काउंसिल में सीट की मांग करेंगे।”
को-ऑप्शन एक व्यावहारिक समाधान
बीसीआई की दलीलों पर प्रतिक्रिया देते हुए बेंच ने एक व्यावहारिक समाधान पेश किया। कोर्ट ने कहा कि कानून में संशोधन की तलाश करने के बजाय काउंसिल अपनी सीटों की संख्या बढ़ा सकती है और ‘को-ऑप्शन’ के जरिए दिव्यांग सदस्य को शामिल कर सकती है।
बेंच ने मिश्रा से कहा, “स्टेट बार काउंसिल में एक या दो सीटें बढ़ाने के लिए एक छोटी बैठक करने पर विचार करें। हमारे समक्ष एक उचित प्रस्ताव दाखिल करें। फिर आप उन्हें चुनाव प्रक्रिया से गुजरने के लिए मजबूर करने के बजाय सदस्यों को को-ऑप्ट (मनोनीत) करने के बारे में सोच सकते हैं।”
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने मिश्रा की दलीलों का विरोध किया और कहा कि ‘राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज एक्ट’ (RPwD Act) में दिव्यांग जनों के लिए आरक्षण का प्रावधान है।
तमिलनाडु को लेकर जताई गई चिंताओं पर सीजेआई ने टिप्पणी की कि तमिलनाडु ने ऐतिहासिक रूप से बार (Bar) को कुछ बेहतरीन नेता दिए हैं और उसे समावेशी प्रथाओं को अपनाने में सबसे आगे रहना चाहिए।
हाल ही में महिलाओं के लिए हुआ था आरक्षण का आदेश
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश बार काउंसिल को समावेशी बनाने की दिशा में एक और कदम है। इससे पहले 4 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने बीसीआई को आगामी स्टेट बार काउंसिल चुनावों में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।
इसके बाद 8 दिसंबर को कोर्ट ने आदेश दिया कि जिन स्टेट बार काउंसिलों में चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है, वहां 30 प्रतिशत सीटें महिला वकीलों के लिए रखी जाएं। कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि मौजूदा वर्ष के लिए 20 प्रतिशत सीटें चुनाव के जरिए और 10 प्रतिशत सीटें को-ऑप्शन के जरिए भरी जाएं, यदि चुनाव लड़ने वाली महिला वकीलों की संख्या पर्याप्त न हो।

