सुप्रीम कोर्ट ने दीपक कुमार टाला को भारतीय दंड संहिता और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में अग्रिम जमानत प्रदान की है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी पर लगे आरोपों के आवश्यक तत्व prima facie (प्रथम दृष्टया) साबित नहीं होते हैं।
न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने क्रिमिनल अपील संख्या 1471/2025 (SLP (Crl.) No. 17738/2024 से उत्पन्न) में यह आदेश पारित किया। यह आदेश हाई कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत से इनकार किए जाने के खिलाफ अपील पर दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला आंध्र प्रदेश के जी.डी. नेल्लोर UPS थाना क्षेत्र में दर्ज FIR संख्या 69/2024 से जुड़ा है, जो 18 अप्रैल 2024 को दर्ज हुई थी। शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 3) अनुसूचित जाति से हैं और 2012 से एक मंदिर ट्रस्ट में अपीलकर्ता के साथ जुड़े थे। वर्ष 2017 से दोनों के बीच मंदिर की संपत्ति को लेकर विवाद शुरू हुए, जिनके कारण कई दीवानी मुकदमे भी चले।
FIR के अनुसार, अपीलकर्ता ने कथित रूप से शिकायतकर्ता पर मंदिर से जुड़ी ज़मीन हस्तांतरित करने का दबाव डाला। जब शिकायतकर्ता ने इनकार किया, तो उन्हें कथित रूप से अगवा कर विभिन्न स्थानों पर बंदी बनाकर धमकी और मारपीट के ज़रिए ज़मीन हस्तांतरण पत्रों पर हस्ताक्षर करवाने को मजबूर किया गया। साथ ही आरोप है कि अपीलकर्ता ने उन्हें जातिसूचक शब्द कहे और प्रार्थना करने से भी रोका।
कानूनी प्रश्न और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य सवाल यह था कि क्या उक्त आरोप SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(r), 3(1)(s), और 3(2)(va) के तहत prima facie मामला बनाते हैं।
कोर्ट ने कहा:
“जातिसूचक टिप्पणी की केवल एक घटना का उल्लेख है, लेकिन ऐसा कोई आरोप नहीं है कि यह टिप्पणी आम लोगों की उपस्थिति में की गई थी।”
कोर्ट ने स्वर्ण सिंह बनाम राज्य [(2008) 8 SCC 435], हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य [(2020) 10 SCC 710] और शाजन स्कारिया बनाम केरल राज्य [2024 SCC OnLine SC 2249] जैसे मामलों का हवाला देते हुए दोहराया कि SC/ST एक्ट की उपरोक्त धाराओं के तहत अपराध तभी बनता है जब अपमानजनक शब्द “सार्वजनिक दृश्य में” कहे जाएं।
साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि:
“शिकायतकर्ता के अपहरण और आपराधिक धमकी की कथित साजिश में अपीलकर्ता की भूमिका केवल अनुमानात्मक है, जिसे मुकदमे के दौरान ही साबित किया जा सकता है।”
इसलिए अग्रिम जमानत से इनकार करने के लिए जरूरी तत्व मौजूद नहीं थे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसकी यह टिप्पणियाँ केवल prima facie हैं और ट्रायल को प्रभावित नहीं करेंगी। आदेश में कहा गया:
“…हम निर्देश देते हैं कि यदि FIR संख्या 69/2024 के संबंध में अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया जाता है, तो उन्हें ट्रायल कोर्ट द्वारा तय की जाने वाली शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा किया जाए।”
वकीलों की उपस्थिति
अपीलकर्ता (दीपक कुमार टाला) की ओर से:
श्री शिवज्ञानम के, अधिवक्ता; श्री सिद्धांत बक्सी, रिकॉर्ड पर अधिवक्ता।
प्रतिवादियों की ओर से:
सुश्री प्रेरणा सिंह और श्री गुंटूर प्रमोद कुमार, अधिवक्ता; सहायक अधिवक्ता श्री समर्थ कृष्ण लूथरा, सुश्री देविना सहगल और श्री यथार्थ कंसल।
