चेक बाउंस मामला: सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम चरण में समझौते की अनुमति दी; अपीलकर्ता पर चेक राशि का 10% कॉस्ट लगाया

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली शामिल हैं, ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सजा को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने यह फैसला पक्षकारों के बीच हुए समझौते के आधार पर सुनाया। हालांकि, अपील स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने अपीलकर्ता को निर्देश दिया कि वह ‘कंपाउंडिंग कॉस्ट’ (समझौता शुल्क) के रूप में चेक राशि का 10% सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के पास जमा कराए।

कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या ट्रायल कोर्ट, अपीलीय अदालत और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्धि (Conviction) बरकरार रखने के बाद भी समझौते के आधार पर अपराध को कंपाउंड (रफा-दफा) किया जा सकता है। पीठ ने धारा 147 के तहत विधायी मंशा और पक्षकारों के बीच हुए समझौते को मान्यता देते हुए इसकी अनुमति दे दी।

मामले की पृष्ठभूमि (Background)

यह मामला प्रतिवादी, मंजू अग्रवाल द्वारा दायर एक आपराधिक शिकायत से उत्पन्न हुआ था। आरोप था कि उनकी फर्म ‘मैसर्स शिव शक्ति पैकिंग इंडस्ट्रीज’ ने अपीलकर्ता की फर्म ‘मैसर्स शिवम टूल्स’ को लोहे की सामग्री (Iron Materials) की आपूर्ति की थी। खातों के मिलान के बाद अपीलकर्ता पर 11,37,827 रुपये की देनदारी पाई गई।

इस दायित्व को पूरा करने के लिए, अपीलकर्ता ने कुल बकाया राशि के चार पोस्ट-डेटेड चेक जारी किए। 5 अक्टूबर 2018 को ये चेक “फंड अपर्याप्त” (Funds Insufficient) के कारण बाउंस हो गए। इसके बाद वैधानिक नोटिस जारी किया गया और फिर शिकायत दर्ज कराई गई।

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फरीदाबाद के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMIC) ने 18 जुलाई 2023 को अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और 20 जुलाई 2023 को छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई। साथ ही, 14,50,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश भी दिया। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता के सेल्स टैक्स और वैट रिटर्न पर भरोसा किया, जिससे सामग्री प्राप्त होने की पुष्टि हुई थी।

अपीलकर्ता ने इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद ने 25 अगस्त 2025 को अपील खारिज कर दी। इसके बाद, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी 15 सितंबर 2025 को उनकी रिवीजन याचिका खारिज कर दी। अपीलकर्ता 25 अगस्त 2025 से हिरासत में था।

पक्षकारों की दलीलें (Arguments)

अपीलकर्ता का पक्ष: अपीलकर्ता की ओर से पेश विद्वान अधिवक्ता सुश्री सुगंध राठौर ने दलील दी कि निचली अदालतों के समवर्ती निष्कर्षों के बावजूद, न्याय के हित में अपराध को कंपाउंड करना उचित होगा। कोर्ट को बताया गया कि दोनों पक्षों के बीच 29 अक्टूबर 2025 को एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Settlement) हुआ है, जिसके तहत मामला 6,65,000 रुपये में सुलझा लिया गया है।

वकील ने रिकॉर्ड पर रखा कि 4,00,000 रुपये का भुगतान 8 अक्टूबर 2025 को डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से किया जा चुका है और शेष 2,65,000 रुपये के लिए दूसरा डिमांड ड्राफ्ट तैयार है।

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प्रतिवादी का पक्ष: प्रतिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री कौस्तुभ सिंह ने समझौते के आलोक में अपराध को कंपाउंड करने का विरोध नहीं किया, बशर्ते कि तय राशि और लागत का भुगतान कर दिया जाए।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणी (Court’s Analysis)

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की पीठ ने कहा कि एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध अर्ध-आपराधिक (Quasi-criminal) प्रकृति का है और धारा 147 के तहत इसे स्पष्ट रूप से कंपाउंडेबल (समझौता योग्य) बनाया गया है। कोर्ट ने टिप्पणी की, “इसका विधायी उद्देश्य पैसे का भुगतान सुनिश्चित करना और चेक की विश्वसनीयता को बढ़ावा देना है।”

इस चरण में कंपाउंडिंग के लिए लागत (Cost) निर्धारित करते हुए, पीठ ने संजबीज तारी बनाम किशोर एस. बोरकर एवं अन्य (2025 SCC OnLine SC 2069) के हालिया फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘दामोदर एस. प्रभु’ मामले में जारी दिशानिर्देशों को संशोधित किया था।

संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार:

“(d) यदि चेक राशि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाती है, तो यह आंकड़ा चेक राशि के 10% तक बढ़ जाएगा।”

फैसला (Decision)

समझौते और कानूनी मिसालों को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. दोषसिद्धि रद्द: ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित और हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि किए गए 18 जुलाई 2023 के दोषसिद्धि के फैसले को रद्द कर दिया गया।
  2. रिहाई का आदेश: कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि किसी अन्य मामले में आवश्यकता न हो, तो अपीलकर्ता को तुरंत जेल से रिहा किया जाए।
  3. कॉस्ट लगाने का आदेश: ‘संजबीज तारी’ मामले के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए, कोर्ट ने अपीलकर्ता को चेक राशि का 10% कंपाउंडिंग कॉस्ट के रूप में जमा करने का निर्देश दिया।
    • राशि: 1,13,783 रुपये (एक लाख तेरह हजार सात सौ तिरासी रुपये मात्र)।
    • कहां जमा होगा: सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी।
    • समय सीमा: चार सप्ताह के भीतर।
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केस विवरण (Case Details)

केस टाइटल: वीरेंद्र सिंह डोंगवाल बनाम मंजू अग्रवाल

केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 5060 ऑफ 2025 (SLP (Crl.) No. 18429 of 2025 से उद्भूत)

कोरम: जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली

याचिकाकर्ता के वकील: सुश्री सुगंध राठौर, श्री मयंक दहिया, श्री संग्राम सिंह राठौर (अधिवक्ता); श्री अजय पाल (एओआर)

प्रतिवादी के वकील: श्री कौस्तुभ सिंह (अधिवक्ता); श्री सुब्रो प्रोकाश मुखर्जी (एओआर)

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