भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक विवादास्पद फैसले का स्वत: संज्ञान लिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 11 साल की लड़की के स्तनों को पकड़ना और उसके पजामे की डोरी तोड़ना न तो बलात्कार है और न ही बलात्कार का प्रयास। शीर्ष अदालत का यह निर्णय देशव्यापी आक्रोश और कानूनी विशेषज्ञों, कार्यकर्ताओं व राजनीतिक नेताओं की आलोचना के बाद आया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में 2021 में हुई एक घटना से संबंधित है, जिसमें दो लोगों, पवन और आकाश, ने कथित तौर पर 11 साल की एक लड़की पर हमला किया। उन्होंने उसके स्तनों को पकड़ा, उसके पजामे की डोरी तोड़ी और उसे एक पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। राहगीरों के हस्तक्षेप के कारण हमला रुक गया और आरोपी मौके से भाग गए।
निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं के तहत आरोप तय किए थे। हालांकि, 17 मार्च 2025 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपराध को पुनर्वर्गीकृत करते हुए फैसला सुनाया कि यह कृत्य बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के रूप में योग्य नहीं है। इसके बजाय, उन्होंने आरोपियों पर आईपीसी की धारा 354-बी (कपड़े उतारने के इरादे से हमला) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश दिया।
हाई कोर्ट का कानूनी तर्क
न्यायमूर्ति मिश्रा के फैसले में कहा गया कि इस घटना में बलात्कार के प्रयास के लिए पर्याप्त दृढ़ संकल्प या प्रत्यक्ष कार्रवाई का प्रदर्शन नहीं हुआ। कोर्ट ने जोर दिया कि “बलात्कार का प्रयास” के लिए ऐसी कार्रवाइयाँ जरूरी हैं जो तैयारी से आगे बढ़ें और अपराध करने की स्पष्ट, तात्कालिक मंशा को दर्शाएँ।

जनता के आक्रोश के बाद, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई, जिसमें फैसले के विवादास्पद हिस्सों को हटाने और यौन हिंसा से जुड़े मामलों में न्यायिक व्याख्या के लिए दिशानिर्देश बनाने की मांग की गई। हालाँकि पहले की याचिकाएँ तकनीकी आधारों पर खारिज हो गई थीं, लेकिन अब कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए हस्तक्षेप किया है।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
स्वत: संज्ञान याचिका दर्ज करके सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराध कानूनों की व्याख्या, खासकर नाबालिगों से संबंधित मामलों में अपनी चिंता जाहिर की है। कोर्ट इस बात की समीक्षा करने की उम्मीद है कि क्या हाई कोर्ट का फैसला पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता में निहित मंशा और संरक्षण के अनुरूप है।