विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Revision) के दौरान अत्यधिक कार्यभार झेल रहे बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) की परेशानी पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा कि वे उनके कार्य घंटे कम करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती पर विचार करें।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्रि कझगम (TVK) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कोर्ट को बताया कि कई BLOs, जो शिक्षक या आंगनवाड़ी कर्मचारी हैं, चुनाव आयोग के अधिकारियों द्वारा डाले जा रहे अत्यधिक दबाव के चलते मृत्यु का शिकार हो चुके हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि BLOs दिए गए समय-सीमा में कार्य पूरा नहीं कर पाते, तो चुनाव आयोग के अधिकारी उनके खिलाफ Representation of the People Act के तहत एफआईआर दर्ज करा रहे हैं, जिससे भय और तनाव बढ़ रहा है।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें इस बात पर विचार कर सकती हैं कि BLOs को नियमित कार्यों के अलावा चुनाव आयोग की जिम्मेदारियों के कारण जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें कैसे कम किया जाए। आदेश में दर्ज किया गया, “यदि वे अपनी नियमित जिम्मेदारियों और चुनाव आयोग द्वारा दिए गए अतिरिक्त कार्यों के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, तो राज्य सरकार ऐसी कठिनाइयों को दूर कर सकती है।”
कोर्ट ने कहा कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश यह आकलन करें कि चुनाव आयोग के लिए अतिरिक्त स्टाफ तैनात करना कितना आवश्यक है ताकि BLOs के कार्य घंटे अनुपातिक रूप से कम किए जा सकें।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाए कि बिना विकल्प उपलब्ध कराए पहले से नियुक्त कर्मचारियों को कार्य से वापस लिया जा सकता है। यदि कोई कर्मचारी किसी “विशेष कारण” से SIR ड्यूटी से छूट मांगता है, तो राज्य का सक्षम अधिकारी मामले-दर-मामले आधार पर विचार कर सकता है और उसके स्थान पर किसी अन्य को नियुक्त कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में विशेष संशोधन प्रक्रिया जारी है, वे चुनाव आयोग के पास आवश्यक संख्या में कर्मचारी उपलब्ध कराने के लिए बाध्य होंगे, और आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त संख्या भी बढ़ा सकते हैं।
TVK की याचिका में मांग की गई थी कि निर्धारित समय में कार्य पूरा न कर पाने पर BLOs के खिलाफ चुनाव आयोग की ओर से की जाने वाली कठोर कार्रवाई पर रोक लगाई जाए। मामला अभी विचाराधीन है।

