ईमानदारी या नैतिकता की कमी से संबंधित न हों तो पदोन्नति से पहले की प्रतिकूल प्रविष्टियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी अधिकारी की सेवा पुस्तिका में पदोन्नति से पहले की प्रतिकूल प्रविष्टियों का अगली पदोन्नति में विरोध तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक कि वे प्रविष्टियाँ ईमानदारी या नैतिकता की कमी से संबंधित न हों। यह निर्णय जस्टिस पमिडीघंटम श्रीनारसिम्हा और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने राजू नारायणस्वामी बनाम केरल राज्य एवं अन्य, सिविल अपील संख्या 3215/2025 में सुनाया।

पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता राजू नारायणस्वामी, 1991 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी हैं, जिन्होंने मुख्य सचिव ग्रेड में पदोन्नति न मिलने को चुनौती दी थी। उन्हें 1 जून 2016 से प्रधान सचिव के पद पर पदोन्नति दी गई थी, लेकिन 14 दिसंबर 2020 को आयोजित स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में उन्हें एपेक्स स्केल के लिए अनुपयुक्त पाया गया। समिति ने यह भी उल्लेख किया कि उनकी 90% से अधिक एसीआर अनुपलब्ध थीं और उपलब्ध रिकॉर्ड के आधार पर प्रदर्शन असंतोषजनक पाया गया।

हालांकि उन्हें एक “विशेष मामला” मानते हुए परखा गया, लेकिन अंततः समिति ने निष्कर्ष निकाला कि उनका प्रदर्शन “उल्लेखनीय से कम” है और उनका नाम पदोन्नति पैनल में शामिल करने योग्य नहीं है।

पुनर्विचार प्रक्रिया

स्क्रीनिंग समिति की सिफारिशों को केरल की मंत्रिपरिषद ने मंजूरी दी। नारायणस्वामी ने पुनर्विचार हेतु एक अभ्यावेदन दिया, जिसे 27 अप्रैल 2021 को पुनर्विचार समिति ने अस्वीकार कर दिया। समिति ने उनके नेतृत्व कौशल और आपसी व्यवहार में कमी, एसीआर की लंबी अनुपलब्धता और मार्च 2019 से मार्च 2020 तक एक वर्ष तक अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने को आधार बताया। बाद में उक्त अवधि को ‘नॉन-ड्यूटी’ के रूप में नियमित कर दिया गया।

इसके बाद केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) और केरल उच्च न्यायालय में की गई कार्यवाहियों से भी उन्हें राहत नहीं मिली। हालांकि, उच्च न्यायालय ने उन्हें लापता एसीआर को पूरा करने और पदोन्नति पर पुनर्विचार के लिए अधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी।

सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समिति को उच्च पदों के लिए सेवा रिकॉर्ड की संपूर्ण समीक्षा करने का अधिकार है, लेकिन किसी पूर्ववर्ती पदोन्नति से पहले की प्रतिकूल प्रविष्टियाँ, यदि वे ईमानदारी या नैतिकता की कमी से संबंधित नहीं हैं, तो अकेले उनके आधार पर पदोन्नति से इनकार नहीं किया जा सकता।

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न्यायालय ने बद्रीनाथ बनाम तमिलनाडु सरकार, (2000) 8 SCC 395 में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा:

“एक अधिकारी की पूरी सेवा अवधि की प्रतिकूल प्रविष्टियों को पदोन्नति या अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश देते समय ध्यान में रखा जा सकता है। लेकिन इन प्रविष्टियों को महत्व देने का आधार निष्पक्षता के कुछ सुदृढ़ सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।”

अदालत ने आगे कहा:

“यदि प्रतिकूल प्रविष्टियाँ पूर्व पदोन्नति से पहले की हैं तो उन्हें अपनी तीव्रता खो चुकी मानना चाहिए और उन्हें कमजोर सामग्री माना जाना चाहिए; लेकिन यदि वे प्रविष्टियाँ ईमानदारी या नैतिकता की कमी से संबंधित हैं तो उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”

पीठ ने यह भी कहा कि समीक्षा समिति ने केवल पुरानी प्रविष्टियों पर भरोसा नहीं किया, बल्कि हाल की अनधिकृत अनुपस्थिति और अनुशासनहीन व्यवहार की निरंतर प्रवृत्ति को भी ध्यान में रखा।

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निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि स्क्रीनिंग प्रक्रिया में कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि या दुर्भावना नहीं थी। अपीलकर्ता के पदोन्नति के मामले पर 2021 और 2022 में विचार किया गया था और दोनों बार उसे खारिज किया गया। साथ ही, उच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया था कि यदि 90% एसीआर उपलब्ध हो जाएं, तो पुनर्विचार किया जा सकता है। इन परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और अपील को खारिज कर दिया।

प्रकरण उद्धरण: राजू नारायणस्वामी बनाम केरल राज्य एवं अन्य, सिविल अपील संख्या 3215/2025

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