सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि किसी आरोपी की बरी को पलटना कोई सामान्य या स्वाभाविक कदम नहीं है और इसके लिए ठोस व मजबूत कारणों का होना जरूरी है। अदालत ने इसी सिद्धांत को दोहराते हुए हत्या के एक मामले में तीन आरोपियों को बरी करने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि एक बार जब किसी आरोपी को अदालत द्वारा बरी कर दिया जाता है, तो उसके पक्ष में निर्दोषता की धारणा और अधिक मजबूत हो जाती है। ऐसे में अपीलीय अदालत द्वारा उस बरी में हस्तक्षेप बेहद सीमित होना चाहिए और यह केवल ठोस, मजबूत और विश्वसनीय कारणों के आधार पर ही किया जा सकता है।
पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि केवल इस आधार पर कि अपीलीय अदालत को साक्ष्यों का कोई दूसरा दृष्टिकोण संभव लगता है, बरी के आदेश को पलटा नहीं जा सकता। भले ही अपीलीय अदालत साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करे, फिर भी बरी किए गए आरोपी के पक्ष में मौजूद निर्दोषता एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली तथ्य बना रहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आपराधिक मामलों में दोष सिद्ध करने की कसौटी अत्यंत कठोर होती है और अभियोजन को यह साबित करना होता है कि आरोपी ने अपराध किया है, वह भी संदेह से परे।
मामले के तथ्यों पर आते हुए अदालत ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते समय साक्ष्यों के सभी प्रासंगिक पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया था और उसी के आधार पर एक संभावित व तर्कसंगत निष्कर्ष पर पहुंचते हुए आरोपियों को बरी किया था।
इन परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि बरी को पलटना अपवाद होना चाहिए, न कि सामान्य नियम।

