सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के एक अपहरण और हत्या के मामले में आरोपी थम्मिनेनी भास्कर को बरी कर दिया है। न्यायालय ने भास्कर को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा और दोषसिद्धि को रद्द करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों (circumstantial evidence) पर आधारित इस मामले को साबित करने में “बुरी तरह विफल” रहा है।
न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। पीठ ने माना कि केवल मकसद के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि अपराध की श्रृंखला को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत न हों।
अपीलकर्ता, थम्मिनेनी भास्कर (आरोपी संख्या 1), ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के 19 जून, 2024 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धाराओं 302 (हत्या), 364 (अपहरण), और 201 (सबूत मिटाना) के तहत निचली अदालत द्वारा दी गई सजा की पुष्टि की गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि
अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह मामला 26 मार्च, 2016 की एक घटना से संबंधित है। मृतक, भूमनिनाथन, जो एक ऑटो चालक था, का नेल्लोर की तलपागिरी कॉलोनी में एक बरगद के पेड़ के पास से कथित तौर पर अपीलकर्ता और उसके दोस्तों द्वारा अपहरण कर लिया गया था। अगले दिन, उसका शव सर्वेपल्ली जलाशय के पास कई चोटों के साथ मिला था।
मृतक के पिता, राजगोपाल वेल्लिमलाई (PW-1), ने 27 मार्च, 2016 को प्राथमिकी (FIR No. 118 of 2016) दर्ज कराई थी। शव मिलने के बाद, मामले में IPC की धारा 302 (हत्या) भी जोड़ दी गई थी।
फैसले में यह भी उल्लेख किया गया कि दोनों पक्षों के बीच पुरानी दुश्मनी थी। घटना से कुछ दिन पहले, 22 मार्च, 2016 को मृतक की मां (PW-2) ने अपीलकर्ता और उसके दोस्तों के खिलाफ महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करने के लिए एक पुलिस रिपोर्ट (अपराध संख्या 108/2016) दर्ज कराई थी। इसी घटना के संबंध में अपीलकर्ता द्वारा एक क्रॉस-एफआईआर (अपराध संख्या 109/2016) भी दर्ज कराई गई थी। अभियोजन पक्ष ने इसी दुश्मनी को अपराध का मकसद बताया था।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता श्री के.के. मणि ने तर्क दिया कि हत्या का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था और पूरी दोषसिद्धि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित थी। उनकी मुख्य दलील यह थी कि मामले के दो प्रमुख गवाह, PW-5 और PW-6, जो कथित तौर पर अपहरण के चश्मदीद थे, ट्रायल के दौरान अपने बयानों से मुकर गए (turned hostile) थे। उन्होंने कहा कि इन गवाहों की गवाही के अभाव में, “लास्ट सीन थ्योरी” (आखिरी बार साथ देखे जाने का सिद्धांत) साबित नहीं होती है, जो ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण होती है।
आंध्र प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहीं अधिवक्ता सुश्री प्रेरणा सिंह ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अपराध के लिए एक स्पष्ट मकसद स्थापित किया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि भले ही PW-5 और PW-6 मुकर गए हों, परिस्थितिजन्य साक्ष्य अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त थे, क्योंकि आरोपी यह समझाने में विफल रहा था कि मृतक के साथ क्या हुआ था जब उसे आखिरी बार उनकी संगति में देखा गया था।
न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों, विशेष रूप से PW-5 और PW-6 की गवाही की गहन समीक्षा की। न्यायालय ने पाया कि इन गवाहों ने पुलिस को Cr.P.C. की धारा 161 और मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 के तहत दिए अपने बयानों में कहा था कि उन्होंने आरोपी को मृतक को एक ऑटो में खींचते हुए देखा था।
हालांकि, ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपनी गवाही के दौरान, दोनों गवाह अपने पिछले बयानों से पलट गए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “उक्त दोनों गवाहों PW-5 और PW-6 की गवाही ट्रायल कोर्ट के समक्ष दर्ज की गई, जहां उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने केवल तलपागिरी कॉलोनी में बरगद के पेड़ के नीचे कुछ ‘गलाटा’ (हंगामा) देखा था, लेकिन वे इसमें शामिल लोगों की पहचान नहीं कर सके। उन्होंने कहीं भी यह नहीं कहा कि उन्होंने मृतक भूमनिनाथन को घसीटकर एक ऑटो में डालते हुए देखा था।”
पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि मकसद, भले ही साबित हो, अपने आप में अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। फैसले में कहा गया, “दोनों के बीच की दुश्मनी अपराध का मकसद हो सकती है, लेकिन यह अपराध के घटित होने को साबित करने के लिए तब तक पर्याप्त नहीं है जब तक कि प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से मृतक के अपहरण और हत्या को साबित न कर दिया जाए।”
यह पाते हुए कि अपीलकर्ता को अपराध से जोड़ने के लिए सबूतों का पूर्ण अभाव है, न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष परिस्थितियों की श्रृंखला स्थापित करने में विफल रहा। फैसले में जोर देकर कहा गया: “इस तरह के सबूतों के अभाव में, और इस तथ्य के कि PW-5 और PW-6 दोनों मुकर गए हैं, यह नहीं माना जा सकता कि A-1 इस घटना में शामिल था और ‘लास्ट सीन थ्योरी’ के आधार पर मृतक की हत्या के लिए जिम्मेदार था। मृतक भूमनिनाथन के अपहरण या उसे आखिरी बार A-1 की संगति में देखे जाने का कोई सबूत नहीं है।”
निर्णय
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि निचली अदालतों ने “सबूतों की पूरी तरह से गलत व्याख्या” के आधार पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराने में गलती की थी, सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया।
फैसले में आदेश दिया गया: “इस प्रकार, हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित निर्णय और आदेश रद्द किए जाते हैं और आरोपी A-1, यानी अपीलकर्ता को सभी आरोपों से बरी किया जाता है और निर्देश दिया जाता है कि यदि वह किसी अन्य मामले में शामिल नहीं है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए।”